पण प्रगटे... ए रीते साची दीवाळी ऊजवाय तेनी रीत
गुरुदेवे आ प्रवचनमां बतावी छे. धर्मी जाणे छे के मारी
चेतनापरिणतिमां मारुं परमात्मतत्त्व बिराजे छे.
चैतन्यदीवडाथी बहार नीकळीने परभावरूपी अंधकारमां
मारुं तत्त्व जतुं नथी. चेतनापरिणतिमां अखंड तत्त्वना
आनंदनो सद्भाव ते अजोड दशा छे. अनंत
चैतन्यदीवडाथी शोभतुं आनंदमय सुप्रभात तेने ऊग्युं.
आनंद स्वरूप जे पोतानुं परमात्मतत्त्व, तेमां जोडाईने जे उपयोग
अंतर्मुख थयो तेमां रागादि समस्त परभावोनो अभाव छे; अहो!
आवी अंतर्मुख परिणतिमां दुःख नथी, भव नथी, द्वेत नथी, ते तो
आनंदरूप छे, मुक्त छे, आनंदमय कारणपरमात्मा साथे ते जोडायेली छे.
एकाकारपणे जोडवो ते शुद्धोपयोगभक्ति छे, ते निर्वाणनी भक्ति छे.
प्रगटी तेमां राग–द्वेष–मोहादि छे ज नहीं. अरे, आवा आनंदथी भरपूर