Atmadharma magazine - Ank 337
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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कारतक: २४९८ आत्मधर्म : १ :
आत्मामां निर्वाणमार्गना मंगळ दीवडा प्रगट्या
ए ज साची दीपावली
[वीर सं. २४९७ आसोवद १४ नियमसार गाथा १३७]
आत्मामां चैतन्य–दीवडा, अने भगवान महावीर
जे मार्गे निर्वाण पाम्या ते निर्वाणमार्ग आ आत्मामां
पण प्रगटे... ए रीते साची दीवाळी ऊजवाय तेनी रीत
गुरुदेवे आ प्रवचनमां बतावी छे. धर्मी जाणे छे के मारी
चेतनापरिणतिमां मारुं परमात्मतत्त्व बिराजे छे.
चैतन्यदीवडाथी बहार नीकळीने परभावरूपी अंधकारमां
मारुं तत्त्व जतुं नथी. चेतनापरिणतिमां अखंड तत्त्वना
आनंदनो सद्भाव ते अजोड दशा छे. अनंत
चैतन्यदीवडाथी शोभतुं आनंदमय सुप्रभात तेने ऊग्युं.
भगवाननो मार्ग एटले के आत्मानी मुक्तिनो मार्ग अत्यंतपणे
अंतर्मुख छे, समस्त रागादि बाह्यभावोनो तेमां सर्वथा अभाव छे.
आनंद स्वरूप जे पोतानुं परमात्मतत्त्व, तेमां जोडाईने जे उपयोग
अंतर्मुख थयो तेमां रागादि समस्त परभावोनो अभाव छे; अहो!
आवी अंतर्मुख परिणतिमां दुःख नथी, भव नथी, द्वेत नथी, ते तो
आनंदरूप छे, मुक्त छे, आनंदमय कारणपरमात्मा साथे ते जोडायेली छे.
अंतरमा आनंदना समुद्रना तळीयाने स्पर्शीने जे परिणति
आवे ते परिणति अत्यंत आनंदरूप छे, ते परिणति साथे आत्माने
एकाकारपणे जोडवो ते शुद्धोपयोगभक्ति छे, ते निर्वाणनी भक्ति छे.
जेना असंख्य प्रदेशो अतीन्द्रिय आनंदरसमां तरबोळ छे एवा
पोताना आत्मामां अत्यंत अंतर्मुख थतां जे परम आनंद परिणति
प्रगटी तेमां राग–द्वेष–मोहादि छे ज नहीं. अरे, आवा आनंदथी भरपूर