Atmadharma magazine - Ank 337
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: २ : आत्मधर्म कारतक: २४९८:
अंर्ततत्त्वने छोडीने बहारमां विषय–कषायोमां डोकि््यां कोण करे?
सुखना दरियामांथी बहार नीकळीने दुःखमां कोण जाय?
अखंड स्वरूपना आश्रये प्रगटेली परिणति पण अखंड छे, अखंड
आत्मस्वरूपमां जे पर्याय एकाग्र थई ते पर्याय पण अखंड छे रागादि
आनंदनो सद्भाव छे, ते अजोड दशा छे; तेनी साथे व्यवहारना भावोनी
तूलना थई शके नहीं. ते पर्यायमां तो आनंदमय प्रभु पधार्या छे.
कारणपरमात्मारूप शुद्धद्रव्य, पोतानी अंतर्मुख परिणतिमां थंभी
गयुं छे; तेथी आगळ नीकळीने बहारना परभावोमां ते जतुं नथी.
अहा! पोतानी चेतनापरिणतिमां पोतानुं परमात्मतत्त्व बिराजे छे;
पोतानी परिणति साथे द्रव्य जोडाय छे, ने परिणति पोताना द्रव्यमां
जोडाय छे, आ रीते द्रव्य–पर्यायनुं अद्वैत छे, तेमां द्वैत नथी, तेमां क्यांय
रागादि परभाव नथी. चैतन्यतत्त्वमां जोडायेली परिणति रागादिमां
जराय जोडाती नथी. अरे, चेतनापरिणतिमां जो चेतनप्रभु न आवे तो
एने चेतन परिणति कोण कहे?
सिद्धभगवान जेम रागमां नथी रह्या, पोताना आनंदमां ज
रह्या छे; तेम साधकनी अंतर्मुख परिणति पण रागादि परभावमां नथी
वर्तती, ते तो परम तत्त्वना आनंदथी भरेली छे. आवी परिणतिरूपे
आत्मा परिणम्यो ते ज साची दीवाळी; तेनामा अनंत चैतन्यदीवडा
प्रगट्या, ने आनंदमय सुप्रभात तेने ऊग्युं.
अरे, संसारना प्रपंचमां ने लक्ष्मी वगेरे वैभवमां जेने सुख
उपयोगने केम जोडे? अने मोक्षनुं सुख तेने क्यांथी मळे? अहा!
,
तेमां उपयोगने जोडतां जे आनंददशा प्रगटे छे ते अजोड छे, तेनी पासे
संसारना बधा सुखो तो प्रपंचरूप छे, तेमां क््यांय साचुं सुख छे ज
नहीं. साचुं सुख तो अंतरना सुखनिधानमांथी नीकळे छे.
अंतरना सुखना निधानमां जेणे पोतानो उपयोग जोड्यो छे एवा