Atmadharma magazine - Ank 337
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म कारतक: २४९८:
मोक्षनुं भजन
भवछेदक भक्तिनुं अदभुत वर्णन
(नियमसार भक्ति–अधिकारना प्रवचनमांथी वीर सं. २४९७ आसो)
शुभरागरूप भक्ति ते कांई भवछेदकभक्ति नथी. सम्यक्त्वादि
शुद्ध भावरूप वीतरागभक्ति ते ज खरेखर भवछेदक–भक्ति छे. एवी
भक्ति वडे अंदरमां भगवानना साक्षत् भेटा थाय छे. जेमां भगवानना
भेटा न थाय ने भवदुःखना भेटा थाय एने ते भक्ति कोण कहे?
सम्यक्त्वादिना भजनमां तो अंदर पोताना परमात्मतत्त्वनी अनुभूति
छे, अनंतशांतिनुं वेदन छे, चैतन्यभगवाननो साक्षात्कार छे.
श्रमणो अने श्रावको शुद्धात्माना आश्रये सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी आराधनारूप
जे भक्ति करे छे ते मोक्षनी भक्ति छे, ते मोक्षनो मार्ग छे.
निज परमात्मतत्त्वनुं भजन एटले श्रद्धा–ज्ञान–आचरण ते साची भक्ति छे.
चैतन्यनी आराधना, चैतन्यनुं भजन तो चैतन्यभाव वडे थाय, रागवडे न थाय.
अरे जीव! तारा आनंदमय स्वभावघरने चूकीने तुं दुःखमय वनवासमां क्यां चाल्यो?
सम्यग्दर्शन ते धर्मभक्ति छे, सम्यग्ज्ञान पण धर्मभक्ति छे, ने सम्यक्चारित्र ते
पण धर्मभक्ति छे; ते त्रणेमां शुद्ध रत्नत्रयपरिणामोनुं सेवन छे, तेमां क्यांय
राग नथी. शुद्ध रत्नत्रयपरिणामोनुं आवुं भजन एटले के आराधना ते मोक्षनो
मार्ग छे, ते मोक्षनी भक्ति छे. आवी भक्ति जे करे छे ते जीव निरंतर भक्त
छे–भक्त छे.
आवी रत्नत्रयभक्ति केम थाय? शुं शुभरागवडे आवी भक्ति थाय? तो कहे छे के
ना; पोतानुं जे परम आत्मतत्त्व, तेमां ऊंडे ऊतरीने, तेना सम्यक्श्रद्धा–ज्ञान–
आचरणरूप जे शुद्धपरिणाम, ते ज साची भक्ति छे; आवी भक्तिनुं फळ मुक्ति छे.