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जेमां रत्नत्रय निधान भरेला छे एवा निज–परमात्माने प्राप्त करनार जीव केवो
छे? तेनुं वर्णन छे. ते जीवने मोक्षनी निश्चय भक्ति छे, एटले के पोताना परमात्मानी
भक्ति छे.
पोताना अनंत आनंदना समुद्रमां अभिमुख थईने आनंदरसनुं पान करवामां तत्पर
छे. आनंदनो समुद्र हुं पोते ज छुं–एम अभेद अनुभूति वडे पोते आनंदरूप थयो छे;
आवो मोक्षमार्ग छे; तेमां कोई भेदकल्पना नथी, विकल्प नथी, दुःख नथी, अशांति
नथी. अरे चैतन्यना वेदनमां विकल्प केवा? चैतन्यवस्तु पोते विकल्प वगरनी छे.
आ छे, बीजो तो कोई रस्तो नथी. अंतरना रस्ता तो अंतरमां ज होयने! शांति तो
अंतरमां छे, बहारमां क्यांय नथी.
विकल्प नथी, तेमां तो चैतन्यना परम आनंदरसनुं पीणुं छे. आवी शुद्ध मोक्षमार्गरूप
परिणतिमां पोताना आत्माने जे परिणमावे छे ते मोक्षनी परमभक्ति करनारो छे
एटले के मोक्षनो आराधक छे.
छे. आत्मानी चैतन्यलक्ष्मीने भजवी ते मोक्षसंपदानी प्राप्तिनुं कारण छे.