Atmadharma magazine - Ank 337
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 44 of 49

background image
कारतक: २४९८ आत्मधर्म : ४१ :
रत्नत्रयना महा निधानथी शोभतुं आनंदमय चैतन्यघर
(धनतेरशनुं प्रवचन: नियमसार गाथा. १३६)

जेमां रत्नत्रय निधान भरेला छे एवा निज–परमात्माने प्राप्त करनार जीव केवो
छे? एटले के निजपरमात्मानी अनुभूति वडे जे मोक्षमार्गने साधी रह्यो छे ते जीव केवो
छे? तेनुं वर्णन छे. ते जीवने मोक्षनी निश्चय भक्ति छे, एटले के पोताना परमात्मानी
भक्ति छे.
पोताना चैतन्य–परमात्मसमुद्रमांथी आनंदनुं अमृत पीवामां ते जीव अभिसुख
छे. ते रागादि विकल्पोनी सन्मुख नथी, तेनाथी तो विमुख छे–जुदो छे, ने अंतरमां
पोताना अनंत आनंदना समुद्रमां अभिमुख थईने आनंदरसनुं पान करवामां तत्पर
छे. आनंदनो समुद्र हुं पोते ज छुं–एम अभेद अनुभूति वडे पोते आनंदरूप थयो छे;
आवो मोक्षमार्ग छे; तेमां कोई भेदकल्पना नथी, विकल्प नथी, दुःख नथी, अशांति
नथी. अरे चैतन्यना वेदनमां विकल्प केवा? चैतन्यवस्तु पोते विकल्प वगरनी छे.
अहा, आवी चैतन्यवस्तु हुं छुं–एम स्वतत्त्वना परम महिमापूर्वक पोताना
स्वरूपनो निर्णय करवो–ते ज अनुभूतिनो रस्तो छे. चैतन्यसूर्य ऊगवानो सीधो रस्तो
आ छे, बीजो तो कोई रस्तो नथी. अंतरना रस्ता तो अंतरमां ज होयने! शांति तो
अंतरमां छे, बहारमां क्यांय नथी.
आत्मा स्वसन्मुख थईने ज्यां सम्यक् रत्नत्रयरूपे परिणम्यो त्यां ते
मोक्षमार्गमां स्थित थयो. तेनां सम्यक् रत्नत्रय ते राग वगरनां छे, तेमां भेद नथी,
विकल्प नथी, तेमां तो चैतन्यना परम आनंदरसनुं पीणुं छे. आवी शुद्ध मोक्षमार्गरूप
परिणतिमां पोताना आत्माने जे परिणमावे छे ते मोक्षनी परमभक्ति करनारो छे
एटले के मोक्षनो आराधक छे.
आजे ‘धनतेरस’ छे; अज्ञानीओ बहारना धननी भावना भावे छे, पण धन्य
एवुं जे निजस्वरूप, तेनी सन्मुख थईने स्वरूपनी लक्ष्मीनुं स्वसंवेदन करवुं ते ज धन्य
छे. आत्मानी चैतन्यलक्ष्मीने भजवी ते मोक्षसंपदानी प्राप्तिनुं कारण छे.