Atmadharma magazine - Ank 337
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 45 of 49

background image
: ४२ : आत्मधर्म कारतक: २४९८:
भाई! तारे आनंदरस पीवो होय तो तारा आत्माने रागमांथी ऊठाडीने तारी
निर्मळपर्यायमां ज स्थाप. तारा परिणामने तारा परमतत्त्वनी सन्मुख कर, तेमां ज
आनंदरसनो अनंतसागर भर्यो छे. भाई, तारुं चैतन्यतत्त्व आनंदथी भरेलुं छे. तारुं
महाशुद्ध सम्यक्रत्नत्रयरूपे परिणमे छे, एटले के पोते मोक्षमार्गमां स्थित थाय छे.
पहेलांं रागमां एकताथी दुःखमां पीडातो हतो, हवे रागथी भिन्न चेतना वडे आनंदने
अनुभवे छे.
स्वमां सन्मुख थवुं ने परथी विमुख थवुं–तेमां बीजानी अपेक्षा क्यां छे? बीजा
परमात्मा तरफना भाववडे पण निजपरमात्मानी सन्मुख थवातुं नथी. पोतानुं
परमात्मतत्त्व पोताथी ज शोभे छे, तेने कोई बीजानी अपेक्षा नथी. वाह रे वाह! जुओ
तो खरा, परमात्मतत्त्व पोते पोताथी केवुं सुशोभित छे! अद्भुत छे. आनंदकारी छे.
वीतरागी देव–गुरुए आवुं तत्त्व कह्युं छे–एम ख्यालमां लीधुं, छतां ज्ञान ज्यां
सुधी वीतरागी देव–गुरुनी ज सामे रहे ने अंदर पोतामां परिणामने न जोडे त्यां–सुधी
आत्मतत्त्वनी स्वानुभूति न थाय. स्वानुभूति तो अंतर्मुख परिणाम छे, ते बर्हिमुख
परिणाम वडे केम थाय? बाह्यवलणथी अंतरमां केम अवाय? अंतरनो मार्ग तो परम
निरपेक्ष, एकल निजस्वभावमां ज समाय छे. चैतन्यचमत्कारी आत्मवस्तु ज कोई
अजब छे–के जे पोते एकलो पोतामांथी ज मोक्षमार्ग काढीने तेमां पोते स्थिर थाय छे,
ने आनंदथी पोते शोभे छे.
अहो, उत्कृष्ट शांतिनुं धाम, अनंत सुखनुं धाम एवुं आ चैतन्यघर! ते महान
शुद्ध रत्नत्रयना निधान वडे शोभतुं छे, तेमां कोई विपदा नथी. तेने कोई बीजानी
सहाय के टेको नथी; आत्मा असहायपणे पोते पोताना चैतन्यधाममां स्वभावथी
टकनारो–शोभनारो–मोक्षमार्गे चालनारो छे. भाई! अंतर्मुख थया वगर आवो मार्ग
नीकळे तेम नथी.
आत्मधर्मना ग्राहको:– पोतानुं लवाजम मनीओर्डर द्वारा मोकले तेमने
सूचना करवामां आवे छे के मनीओर्डरना फोर्ममां नीचेनी कापली–के जे पैसा लेनार
पासे रहेती होय छे–तेमां आपनुं पूरुं सरनामुं लखो; तथा जे काम माटे मनीओर्डर कर्यो
होय तेनी विगत लखो. सरनामा वगर व्यवस्थामां मुश्केली पडे छे. (एक जिज्ञासु–
भाईनो मनीओर्डर रू. ७–४० नो आवेल छे तेओ पूरुं सरनामुं मोकलशो.)