Atmadharma magazine - Ank 337
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 48 of 49

background image
भगवानो मार्ग ज्ञानमां समाय छे
आत्मा पोते स्वतःसिद्ध ज्ञान छे. अने ज्ञान पोते स्वतःसिद्ध पुण्य–पाप–
राग–द्वेष वगरनुं छे. तेमां स्वतःआनंद छे, दुःख नथी. अंदरमां ज्ञानभाव छे
तेने पकडतां आत्मा वेदनमां आवे छे, अने ए वेदनमां रागद्वेषादि समस्त
विकारनो अभाव छे, अनंत गुणना शांतरसनो सद्भाव छे. विकार वगरनुं
शांत–शांत ज्ञानस्वरूप छे ते ज मुक्तिनुं मूळ छे, ते ज्ञाननी साथे महा आनंद–
महा सुख छे. आवा अनंत गंभीर भावोथी भरेलुं ज्ञानतत्त्व छे, ते आत्मा
पोते ज छे...ते हुं पोते ज छुं.
आत्मा ज्ञानमय छे, तेनां ज्ञानमय परिणाममां तो शांति होय, वीतरागता
होय, महान आनंद ने सुख होय, चैतन्यप्रकाश होय; ज्ञानपरिणाममां अशांति न
होय, राग–द्वेष न होय, दुःख न होय, मोहअंधकार न होय. आवुं चैतन्यतेज हुं
छुं–एम जे अनुभवे छे तेने. ज सम्यक्त्वादि वीतरागभावरूप सामायिक होय छे.
आवा ज्ञानभाव वडे ज भवनो नाश थाय छे ने मोक्षसुखनी प्राप्ति थाय छे. तेथी
धर्मात्मा कहे छे के अहो, आवुं जे मारुं ज्ञान–तेने ज हुं पूजुं छुं, तेमां ज नमुं छुं,
तेमां ज स्वसन्मुख थईने एकाग्र थाउं छुं.
राग वगरनुं मारुं जे ज्ञानस्वरूप छे ते ज सुंदर छे, ते ज जगतना शिरोमणि
जेवुं छे. आवा ज्ञानपणे आत्माने अनुभववो ते ज भगवान वीतरागनो मार्ग छे.
भगवाननो मार्ग भगवाननो मार्ग ज्ञानमां समाय छे; रागमां भगवाननो मार्ग
नथी. ज्ञान तो रागनुं नाशक छे, उत्पादक नथी, केमके ज्ञान पोते स्वत: राग वगरनुं
छे. ज्ञानमां राग क्यां छे?–के ते रागने करे! ज्ञान कदी विकल्पने करतुं नथी, पोते
विकल्परूप थतुं नथी; विकल्प साथे ज्ञान भेळसेळ थतुं नथी.
अहो, आवुं ज्ञान! शुद्ध एकलुं वीतरागी ज्ञान! ते हुं छुं. आवा ज्ञाननी
अनुभूतिमां महान आनंद छे, ने रागनो अभाव छे. अरे, पोते पोताना
ज्ञानना स्वीकार वगर तेमां एकाग्रता के निर्विकल्पता क्यांथी थाय? आनंदनुं
धाम तो हुं ज छुं, ज्ञाननुं धाम तो हुं ज छुं. जगतमां त्रिकाळपूज्य आत्मानो
ज्ञानस्वभाव छे, ज्ञानने तेमां जोडीने, ज्ञानवडे हुं मारा आवा स्वभावने पूजुं
छुं. आत्मा ज्ञानस्वरूप छे, तेनी उपासना–सेवा–पूजा ज्ञानवडे ज थाय छे, शरीर
वडे के रागवडे तेनी पूजा थती नथी. देहथी ने रागथी भिन्न थईने, ज्ञानमां
एकाग्र थवुं ते ज ज्ञाननी आराधना छे, ते ज मुक्तिनो उपाय छे.