: १०: आत्मधर्म २४९८: मागशर
वात छे. अमे तो अमारा आत्मामां स्वानुभूति करीने सिद्धने स्थाप्या छे, अने तमे
पण आवी अनुभूति करीने तमारा आत्मामां सिद्धने स्थापो.
मोटा महेमानने आंगणे बोलाववा माटे तैयारी पण मोटी होय छे, तेम अहीं सिद्ध
भगवान जेवा सर्वोत्कृष्ट शुद्धआत्माने आंगणे बोलावीए छीए, ते माटे आत्मानी
पर्यायमां शुद्धअनुभूति होय छे; ते अनुभूति सहित विकल्प छे–त्यां सिद्ध भगवाननी
भाव अने द्रव्यस्तुति छे. अनुभूति वगर एकला विकल्पने तो द्रव्यस्तुति पण कहेता नथी.
रागथी जुदा थयेला ज्ञानमां एटली मोकळाश छे के अनंता सिद्धने तेमां स्थापी
शकाय. विकल्पमां एवी मोकळाश नथी के तेमां सिद्ध समाय. पण विकल्पथी भिन्न थयेली
जे ज्ञान पर्याय अंतरमां वळी, ते ज्ञानपर्यायमां एवी मोकळाश थई गई के अनंता सिद्ध
तेमां आवीने बेठा... एटले के आ आत्मा पोते अनंता सिद्धभगवंतोनी श्रेणीमां बेठो.
वाह रे वाह! समयसार तो अपूर्व योगे भव्य जीवोना भाग्ये रचाई गयुं छे. केवळी
अने श्रुतकेवळी भगवंतोनो विरह भूलाई जाय–एवा अपूर्व अनुभूतिना भावो आमां
भर्या छे. आ समयसारना श्रोता उपर पण आचार्यदेवने एवो विश्वास छे के तेनामां
पण सिद्धने स्थापे छे. अमारो श्रोता पण भावस्तुति अने द्रव्यस्तुतिनी लायकातवाळो
छे; अमारा समयसारनो श्रोता एवो नथी के एकला विकल्पमां अटके...पण ते ज्ञाननी
सम्यक्धाराने विकल्पथी जुदी पाडीने, शुद्धआत्माने अनुभवमां ल्ये छे. जेवा भाव अमे
कहीए छीए तेवा ज भाव श्रोता पोतामां प्रगट करे छे–ए रीते भावस्तुति वडे श्रोता
पण पोताना आत्मामां सिद्धने स्थापीने सांभळे छे. वक्ता–श्रोतानी आवी अपूर्व
संधिपूर्वक आ समयसार शरू थाय छे. विकल्प अने वाणीना परिणमन काळे अंदर
स्वसंवेदनरूप भावश्रुतनी धारा परिणमी रही छे. अहा, जेणे बहारमां सीमंधर
भगवाननो भेटो थयो छे ने अंदरमां पोताना चैतन्यभगवाननो भेटो थयो छे एवा
कुंदकुंदाचार्यदेवनी आ वाणी तो जुओ! समयसारनी जेवी शरूआत करी तेवुं अखंडपणे
पूरुं थई गयुं छे; ने आजे बे हजार वर्ष पछी पण श्रीगुरुप्रतापे अखंडपणे तेनुं श्रवण
मळे छे...ते आपणा जेवा भव्य जीवोने महान कल्याणरूप आत्मअनुभूतिनुं कारण छे.
• परमात्मानो मार्ग •
आत्मानो अनुभव करीने परमात्माना मार्गे पडेला
संतो तने ते मार्ग देखाडे छे...तुं पण तारा स्वानुभव वडे आ
मार्गने देख. महान आनंदनो आ मार्ग छे. आ मार्ग तने तारा
चैतन्यमय महान आनंदसमुद्रमां लई जशे.