Atmadharma magazine - Ank 338
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 12 of 45

background image
मागशर: २४९८ आत्मधर्म : ९:
मंगळमां सिद्ध भगवान जेवा मोटा महेमानने आमंत्र्या छे. आमंत्रण करनार आत्मा
पोते पण एवो ज मोटो छे...के अनंता सिद्धोने एक ज्ञानपर्यायमां समावी दे. अहो!
अद्भुत आनंदकारी जेनुं कथन छे–एवा समयसारना मंगळमां अनंता सिद्धभगवंतोने
आमंत्रुं छुं.
सिद्धभगवंतो अने केवळीभगवंतो ते देव;
अनादिनिधन जिनवाणीरूप श्रुत ते शास्त्र;
श्रुतकेवळी भगवंतो ते गुरु;
आवा उत्तम देव–शास्त्र–गुरुनी संधिपूर्वक मारा आत्माना समस्तवैभवथी हुं
आ अलौकिक समयसार द्वारा आत्मानुं शुद्धस्वरूप देखाडुं छुं.–तेने हे भव्य श्रोताजनो!
तमे बहुमानथी सांभळजो, अने स्वानुभूति वडे प्रमाण करजो.–आवा अपूर्व
मंगळपूर्वक आचार्यदेव कुंदकुंदभगवान आ समयसार शरू करे छे.
टीकामां प्रथम ‘अथ प्रथमत एव’ शब्द छे. ‘अथ’ एटले के ‘हवे...’ अत्यार
सुधी कर्युं तेना करतां अपूर्व साधकभाव हवे शरू थयो छे. सिद्धपदने साधवानी शरूआत
थई गई छे–एवा साधकभावसहित आ समयसार कहेवाय छे. आत्मामां साधकभाव
शरू थयो छे ते पोते अपूर्व मंगळ छे. आवा मंगळपूर्वक समयसार शरू थाय छे.
शुद्धात्मामां स्वसन्मुख थईने, जेमां आराध्य अने आराधक एवो भेद नथी
एवी भावस्तुति करुं छुं. जेणे विकल्पथी पार थईने आत्मानी शुद्ध अनुभूति करी तेणे
सिद्धभगवाननी परमार्थ स्तुति करी. एकला विकल्पमां सिद्धने स्थापवानी ताकात नथी,
विकल्पथी पार थईने ज्ञानमां सिद्धने स्थाप्या छे. पांचमी गाथामां आचार्यदेव कहेशे के
हे भाई! अमे स्वानुभूतिथी शुद्ध आत्मा देखाडीए छीए, तमे स्वानुभवथी ते प्रमाण
करजो. विकल्पथी हा पाडीने न अटकशो, पण स्वानुभव द्वारा प्रमाण करजो...‘पछी
अनुभव करजो–’ एम नहीं, पण अमे अत्यारे कहीए छीए अने तमे पण अत्यारे ज
स्वानुभव करीने प्रमाण करजो. प्रवचनसारमां पण छेल्ले कहे छे के हे जीवो! आवा
आनंदमय चैतन्यतत्त्वने तमे आजे ज अनुभवो! निर्विकल्प थईने आत्माने
अनुभववानो आ उत्तम काळ छे...बीजुं बधुं भूली जा...निर्विकल्प थईने आत्माने
अनुभवमां आजे ज ले. ताराथी आजे ज थई शके तेवुं छे.
अहो, मोटाना आमंत्रण पण मोटा छे. सिद्धपरमेश्वरना पगले जवानी आ