Atmadharma magazine - Ank 338
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: ८: आत्मधर्म २४९८: मागशर
अपूर्व साधकभाव सहित समयसारनी शरूआत
साधकना आत्मामां सिद्धप्रभु पधार्या छे
हे प्रभो! जेम आप सिद्धभगवंतोने आत्मामां
स्थापीने स्वानुभूतिना महान वैभवथी आ समयसारमां
शुद्धात्मां देखाडो छो...तेम आपनी आज्ञाअनुसारी अमे पण,
अमारा ज्ञानमांथी रागने काढी नांखीने, ज्ञानमां सिद्ध
भगवानने पधरावीने, स्वानुभूतिना बळथी आपे बतावेला
शुद्धात्माने प्रमाण करीए छीए...आ रीते गुरु–शिष्यनी अपूर्व
संधिपूर्वक समयसार सांभळीए छीए.
हवे समयसारमां अपूर्व मंगलाचरणनी पहेली गाथानो अवतार थाय छे
वंदितु सव्वसिद्धे धु्रवमचलमणोवमं गई पत्ते।
वोच्छामि समयपाहुडम् इणमो सुयकेवली भणियं।। १।।
भगवान सूत्रकार कुंदकुंदाचार्य पोते मंगळ छे, तेमनुं कहेवुं आ सूत्र पण मंगळ
छे ने तेमां कहेलो शुद्धात्मानो भाव ते पण मंगळ छे. तेनी शरूआतमां सिद्धभगवंतोने
वंदनपूर्व अपूर्व मंगल कर्युं छे.
अहो, सिद्धभगवंतो! पधारो...पधारो...पधारो! मारा ज्ञानमां हुं
सिद्धभगवंतोने पधरावुं छुं. केटला सिद्धभगवंतो? अनंता सिद्ध भगवंतो. परमार्थे
सिद्ध जेवुं जे शुद्ध आत्मस्वरूप, तेनी निर्विकल्प अनुभूति ते अभेदरूप भावनमस्कार
छे...तेमां वंद्य–वंदकनो भेद नथी.
अतीन्द्रिय आनंदने पामेला जे अनंत सिद्धो, तेमने हुं मारा ज्ञानमां स्वीकारुं छुं;
अनंता सिद्धोने विश्वासमा लईने, मारी ज्ञानपर्यायमां पण सिद्धने स्थापुं छुं.