Atmadharma magazine - Ank 338
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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मागशर: २४९८ आत्मधर्म : ७:
थशे ज–एवा कोलकरार छे. आ रीते वक्ता अने श्रोता बंनेना मोहना नाशने
माटे आ समयसारनी रचना छे. माटे हे भाई! तुं विकल्पमां ऊभो रहीने न
सांभळीश, वच्चे विकल्प आवे तेना उपर जोर न दईश, पण समयसारना
वाच्यरूप जे शुद्धात्मभाव अमे कहेवा मांगीए छीए ते ‘भाव’ ने लक्षमां लईने
तेना उपर उपयोगनुं जोर देतां तारो मोह नाश थई जशे ने तारा आनंदना
निधान खूली जशे.
हे भव्य! आ समयसार सांभळता तुं अंदरमां शुद्धात्माना ज लक्षने घोळ्‌या
करजे,–तेनुं घोलन करतां करतां परिणति पण शुद्ध थई जशे. आचार्यदेव कहे छे
के अमे समयसारनी आ टीका रचीए छीए, ते वखते अमारी परिणतिमां तो
अमारुं परमात्मतत्त्व ज घोळाया करे छे; परिणतिए अंतरना शुद्धस्वरूप साथे
केलि करी छे; विकल्प छे तेमां अमारी परिणतिनुं जोर नथी. पहेलेथी ज विकल्प
अने चेतनानी भिन्नतानुं जोर छे; एटले विकल्पना काळेय ज्ञानमां तो एम
आवे छे के विकल्पथी जुदो चैतन्यभाव हुं छुं.–एटले ज्ञानपरिणति विकल्पथी
छूटी पडीने चैतन्यस्वभावमां ज झुकती जाय छे, तेथी ते शुद्ध थती जाय छे.
आवुं आ समयसारना घोलननुं फळ छे.
आचार्यभगवान कहे छे के आ समयसार द्वारा अमे शुद्धात्मा बतावशुं. जे
शुद्धआत्मा अमे अनुभव्यो छे ते अमे आ समयसारमां देखाडशुं; माटे तमे पण
शुद्धात्माना लक्षे ज आ समयसार सांभळजो. बीजे बधेथी लक्ष हटावीने,
अंतरमां शुद्धआत्मामां ज लक्षने एकाग्र करजो....एटले परमात्मानां निधान
तमने तमारामां ज देखाशे....शुद्धात्मानी अनुभूति थशे ने मोहनो नाश थई जशे.
अहा, श्रीगुरुमुखे आवुं समयसार सांभळता शुद्धात्मानो उल्लास जागे छे!
परम नस्पह
आनंदथी भरपूर अपार महिमावंत मारुं स्वरूप, तेनी
सन्मुख थतां आखुं जगत तरणां जेवुं तुच्छ लागे छे. चैतन्यवस्तुनी
परम शांति पासे अमने जगतमां बीजा कोईनी किंमत भासती नथी.
आनंदना निधानथी भरेलुं अतूल महिमावंत छे,–एम धर्मीजीव
सर्वोत्कृष्ट निजवैभवने पोतामां देखे छे; त्यां जगत प्रत्ये परम
निस्पृहता छे. जेने पोतानो अचिंत्यमहिमा पोतामां देखाय तेने ज
जगतप्रत्ये परम निस्पृहता थाय.