Atmadharma magazine - Ank 338
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: ६: आत्मधर्म २४९८: मागशर
समयसार सांभळतां.तारा आनंदनिधान खूली जशे
(समयसार कळश ३ कारतक वद १०: २४९८)
आचार्यदेव कहे छे के अहो! आ समयसारनी टीकावडे अनुभूति
अत्यंत शुद्ध थाओ; एटले हे भव्यश्रोता! आ समयसारना श्रवणवडे
तारी परिणति पण शुद्ध थशे. एवो कोल करार छे,–पण कई रीते
सांभळवुं? ते अहीं बतावे छे: अमे जे शुद्धात्मां देखाडवा मांगीए
छीए तेना उपर लक्षनुं जोर देजे, श्रवणना विकल्प उपर जोर न दईश;
आ रीते उपयोगमां शुद्धात्मानुं घोलन करतां करतां तने जरूर
शुद्धात्मानी अनुभूति थशे...तारो मोह नाश थई जशे ने तारा
आनंदनिधान खूली जशे.
अहा, समयसारनी टीका करतां अमृतचद्रस्वामी कहे छे के आ समयसारनी
व्यख्याथी, एटले के समयसारमां शुद्धात्माना जे भावो कह्या छे ते भावोना
वारंवार ज्ञानमां घोलनथी, आत्मानी अनुभूति शुद्ध थाय छे.
जुओ, आमां टीका रचती वखते शास्त्र तरफनो जे शुभविकल्प छे ते विकल्पनी
मुख्यता नथी, पण ते ज वखते विकल्पथी जुदुं ने ज्ञान शुद्धात्मा तरफ काम करी
रह्युं छे ते ज्ञानना जोरे ज परिणतिनी शुद्धता थती जाय छे, विकल्पनुं जोर नथी,
ज्ञाननुं ज जोर छे. विकल्पना जोरे शुद्धि थवानुं माने तेने तो समयसारनी
खबर ज नथी, समयसारनो अभ्यास करतां तेने आवडतुं नथी. भाई,
समयसारनो अभ्यास एटले तो शुद्धआत्मानी भावना; समयसार तो
रागादिथी भिन्न शुद्ध एकत्वरूप आत्मा बतावीने तेनी भावना करवानुं कहे छे;
ने ज्ञानने अंतर्मुख करीने शुद्धआत्मानी आवी भावना ते ज अनुभूतिनी
शुद्धतानुं कारण छे.
‘समयसार’ मां अमारुं जोर विकल्प उपर नथी; विकल्पथी पार अमारो जे एक
ज्ञायकभाव, ते ज अमे छीए, तेमां ज अमारुं जोर छे. जे श्रोताजन पण आवा
ज्ञायकस्वभाव तरफना जोरथी समयसारनुं श्रवण करशे तेनी परिणति पण शुद्ध