Atmadharma magazine - Ank 338
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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मागशर: २४९८ आत्मधर्म : ५:
थाय. जाणनारस्वभावी आत्मा पोते सुखस्वरूपी छे, तेथी पोते पोताने जाणतां ज
परम सुख थाय छे.
आवो सारभूत शुद्धआत्मा मने मारी स्वानुभूति वडे ज जणाय छे; आवा
आनंदमय आत्मा सिवाय बीजुं बधुंय मारी स्वानुभूतिथी बहार छे. स्वानुभूतिमां
समायो तेटलो ज मारो शुद्धआत्मा छे, ते ज समयसार छे, तेने ज हुं नमुं छुं. रागादि
समस्त परभावो मारी स्वानुभूतिथी बहार छे, ते बाह्यभावो वडे आत्मा जणातो नथी,
अनुभवातो नथी.
स्वानुभूतिगम्य एवो आत्मा ज जगतमां सहुनो भूप छे; जगतना सर्वे
पदार्थोनो राजा, सौथी श्रेष्ठ महान सुंदर आ चिदानंदआत्मा पोते ज छे. अहो जीवो!
आवा पोताना आत्माने तमे स्वानुभूतिवडे जाणो; एने जाणतां महान आनंदनुं
वेदन थशे.
भाई, जगतना बाह्यपदार्थोने तो अनादिकाळथी ईन्द्रियज्ञानवडे तें जाण्या पण
जराय सुख तने न मळ्‌युं; माटे परने जाणनारुं ईन्द्रियज्ञान तो सार वगरनुं छे.
सारभूत जेने जाणता आनंद थाय एवो तारो आत्मा,–तेने अतीन्द्रिय अनुभूतिवडे
जाणतां ज तने कोई अतीन्द्रिय अपूर्व सुखनो अनुभव थशे.
अरे, आ चैतन्यतत्त्व परम गंभीर महिमावंत, तेनी पासे जगतना बाह्य
जाणपणानी शी किंमत छे? बापु! एनो महिमा छोड, ने तारा उपयोगने आत्मामां
जोडीने तेनो परम महिमा कर.–ते ज मोक्षमार्गनी शरूआत छे.
हे जीव! नें बधुं जाण्युं–मात्र एक आत्माने न जाण्यो तेथी तने जराय सुख न
थयुं. जाणनार तुं पोते, सुख तारा पोतामां, तेने जाण्या वगर सुख क्यांथी थाय? अने
स्वतत्त्वने न जाण्युं एटले परने जाणतां तेमां पोतापणुं मान्युं, तेमां सुख मान्युं, तेथी
संसारभ्रमण करीने दुःखी थयो. जगतथी जुदो, ने जगतनो शिरताज, जगतमां
सौथी श्रेष्ठ, एवा निजात्माने जाणतां ज अनंत गुणनो सम्यक्भाव खीले छे ने अनंती
शांति अनुभवाय छे.–आवा अपूर्व मंगळभाव सहित आ समयसार शरू थाय छे,–
साधकभाव शरू थाय छे.