नमुं छुं. मारुं शुद्धआत्मद्रव्य मारी स्वानुभूतिरूप पर्यायवडे ज प्रकाशमान छे;
स्वानुभूतिथी जुदुं बीजुं कोई साधन नथी.
तेनो गुण, स्वानुभूति ते पर्याय, आ रीते शुद्धसमयसारमां द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणे
समाई गया. आवा शुद्धआत्माने लक्षगण करीने तेने हुं नमुं छुं, तेने अनुभवुं छुं,
स्वसन्मुख थईने आनंद सहित आत्मअनुभूति करुं छुं. आवी स्वानुभूति ते मोक्षमार्ग
छे, तेमां संवर–निर्जरा आव्या, ने आस्रवबंधनो अभाव थयो. शुद्धआत्मानी आवी
स्वानुभूति तो अनंतगुणना निर्मळभावोथी भरेली महा गंभीर छे; तेमां आनंदनी
मुख्यता छे. स्वानुभूतिमां आत्मा पोते पोताने प्रत्यक्ष थाय छे. चोथा गुणस्थाने
स्वानुभूतिमां आत्मां पोते पोताने प्रत्यक्ष थाय छे. आवी अपूर्व स्वानुभूति ते ज आ
समयसार–परमागमनुं तात्पर्य छे. जेणे आवी अनुभूति करी ते आत्माना असंख्य
प्रदेशमां समयसार परमागमना भावो कोतराई गया; ते आत्मा पोते भावश्रुतरूप
परिणम्यो; तेनी पर्याये अंतर्मुख थईने पोताने पूर्ण भगवानरूपे प्रसिद्ध कर्यो.
ईन्द्रियज्ञानवडे आत्मा जणाय नहीं, स्वानुभूतिमां ज आत्मा पोते पोताने
परमआनंदसहित प्रत्यक्ष थाय छे. आवी अनुभूतिना गंभीर महिमानी शी वात! आ
अनुभूतिमां राग न समाय; तेमां आखो शुद्धआत्मा प्रकाशे छे, पण विकल्पनुं तो तेमां
नामोनिशान नथी. जे कोई जीवोए आत्माने साध्यो छे तेमणे आवी अनुभूतिनी
क्रियावडे ज आत्माने साध्यो छे. माटे तमे पण आवी स्वानुभूतिना लक्षे ज
समयसारनुं श्रवण करजो. सांभळती वखते राग उपर लक्ष न देशो, विकल्प उपर जोर
न देशो, पण जे शुद्धआत्मा कहेवाय छे तेने लक्षमां लईने तेना उपर जोर देतां तमने
पण अपूर्व आनंदसहित स्वानुभूति थशे. आवी स्वानुभूति थई ते अपूर्व मंगळ छे.