Atmadharma magazine - Ank 338
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: ४: आत्मधर्म २४९८: मागशर
द्रव्यकर्म–नोकर्मरहित शुद्ध छे; स्वानुभूतिवडे आवा शुद्धआत्माने लक्षमां लईने तेने ज हुं
नमुं छुं. मारुं शुद्धआत्मद्रव्य मारी स्वानुभूतिरूप पर्यायवडे ज प्रकाशमान छे;
स्वानुभूतिथी जुदुं बीजुं कोई साधन नथी.
स्वानुभूतिथी प्रसिद्ध थयेलो आत्मा केवो छे? के चित्स्वभाव छे. हुं पोते
चैतन्यस्वभाव छुं, चैतन्यसत्तारूप वस्तु हुं ज छुं. शुद्धआत्मा ते द्रव्य, चित्स्वभाव
तेनो गुण, स्वानुभूति ते पर्याय, आ रीते शुद्धसमयसारमां द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणे
समाई गया. आवा शुद्धआत्माने लक्षगण करीने तेने हुं नमुं छुं, तेने अनुभवुं छुं,
स्वसन्मुख थईने आनंद सहित आत्मअनुभूति करुं छुं. आवी स्वानुभूति ते मोक्षमार्ग
छे, तेमां संवर–निर्जरा आव्या, ने आस्रवबंधनो अभाव थयो. शुद्धआत्मानी आवी
स्वानुभूति तो अनंतगुणना निर्मळभावोथी भरेली महा गंभीर छे; तेमां आनंदनी
मुख्यता छे. स्वानुभूतिमां आत्मा पोते पोताने प्रत्यक्ष थाय छे. चोथा गुणस्थाने
स्वानुभूतिमां आत्मां पोते पोताने प्रत्यक्ष थाय छे. आवी अपूर्व स्वानुभूति ते ज आ
समयसार–परमागमनुं तात्पर्य छे. जेणे आवी अनुभूति करी ते आत्माना असंख्य
प्रदेशमां समयसार परमागमना भावो कोतराई गया; ते आत्मा पोते भावश्रुतरूप
परिणम्यो; तेनी पर्याये अंतर्मुख थईने पोताने पूर्ण भगवानरूपे प्रसिद्ध कर्यो.
जुओ, आ अमृतचंद्र आचार्यदेवनुं मांगळिक!
तेमणे तो आ पंचमकाळमां कुंदकुंदप्रभुना गणधर जेवुं काम कर्युं छे.
आत्मा पोताना ज ज्ञानवडे स्वसंवेदन–प्रत्यक्षपणे पोते पोताने जाणे छे, पोते
पोताने जाणवामां कोई बीजानी, रागनी के ईन्द्रियनी मदद नथी. एकला परोक्ष ज्ञानवडे,
ईन्द्रियज्ञानवडे आत्मा जणाय नहीं, स्वानुभूतिमां ज आत्मा पोते पोताने
परमआनंदसहित प्रत्यक्ष थाय छे. आवी अनुभूतिना गंभीर महिमानी शी वात! आ
अनुभूतिमां राग न समाय; तेमां आखो शुद्धआत्मा प्रकाशे छे, पण विकल्पनुं तो तेमां
नामोनिशान नथी. जे कोई जीवोए आत्माने साध्यो छे तेमणे आवी अनुभूतिनी
क्रियावडे ज आत्माने साध्यो छे. माटे तमे पण आवी स्वानुभूतिना लक्षे ज
समयसारनुं श्रवण करजो. सांभळती वखते राग उपर लक्ष न देशो, विकल्प उपर जोर
न देशो, पण जे शुद्धआत्मा कहेवाय छे तेने लक्षमां लईने तेना उपर जोर देतां तमने
पण अपूर्व आनंदसहित स्वानुभूति थशे. आवी स्वानुभूति थई ते अपूर्व मंगळ छे.
आत्मा ज एवी सारभूत वस्तु छे के पोते पोताने जाणतां महान सुख थाय छे.
आत्माथी भिन्न एवी कोई सारभूत वस्तु नथी के जेने जाणतां जीवने सुख