Atmadharma magazine - Ank 338
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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मागशर: २४९८ आत्मधर्म : ३:
• आनंदमय स्वानुभूति •
––जेमां भगवान आत्मा शुद्धपणे प्रकाशे छे
(समयसार मंगळकळश १ वीर सं. २४९८ कारतक वद ६)
समयसारनुं तात्पर्य छे–शुद्धात्मानी अनुभूति, अंतर्मुख
थईने जेणे आवी आनंदमय अनुभूति करी तेने पोताना
आत्माना असंख्य प्रदेशोमां समयसार–परमागमना भावो
कोतराई गया...तेनी पर्यायमां सिद्धभगवान पधार्या, तेनो
आत्मा भगवानपणे पोतामां प्रसिद्ध थयो. ते शुद्धात्मामां नमीने
साधक थयो. आवा साधकभाव सहित समयसार शरू थाय छे.
नमः समयसाराय...मांगळिकमां शुद्धआत्माने नमस्कार करतां आचार्यदेव कहे
छे के अहो, निर्विकल्प स्वानुभूतिमां प्रकाशमान एवा सारभूत शुद्धआत्माने हुं नमुं छुं.
स्वानुभूति कही तेमां रागादि परभावनो अभाव आवी गयो, केमके ते रागादिभावो
आत्मानी अनुभूतिथी बहार छे. मारी स्वानुभूतिमां आव्यो तेटलो ज शुद्धसत्तारूप
वस्तु हुं छुं, तेमां ज हुं नमुं छुं. बहारना भावो अनंतकाळ कर्यां, हवे अमारुं परिणमन
अंदर ढळ्‌युं छे एटले अपूर्व साधकभाव शरू थयो छे; अने एवा भाववडे शुद्धाआत्मामां
ज नमुं छुं. तेने नम्यो छुं एटले के तेनी स्वानुभूति करी छे ने हजी विशेष तेमां ज नमुं
छुं; एटले क्षणेक्षणे मारो साधकभाव वधतो जाय छे. आवा अपूर्व भावसहित आ
समयसारनो मंगलप्रारंभ थाय छे.
आ १७ मी वखत प्रवचनना प्रारंभमां कहानगुरु चैतन्यना परम उल्लासपूर्वक
कहे छे के–अहो, सिद्धभगवंतो तो भावकर्म–द्रव्यकर्म–नोकर्मरहित एवा शुद्धआत्मा छे
तेथी तेओ ‘समयसार’ छे; ने आ मारो आत्मा पण परमार्थे भावकर्म