भावश्रुतधारा अंतरमां परिणमी रही छे.–आवी ज्ञानधारापूर्वक आ समयसार कहेवाय
छे. भावश्रुतनी धारा ते भाववचन छे, ने द्रव्यश्रुतमां ते निमित्त छे. एटले आमां ए
वात पण आवी के जेना अंतरमां आवी स्वानुभूतिरूप भावश्रुतनी धारा वर्ते छे ते ज
आ समयसारनो उपदेश दई शके छे. जेना अंतरमां रागथी भिन्न भावश्रुतनी धारा
नथी तेना हृदयमां सिद्धनी भावस्तुति नथी, ने ते जीव समयसारनो यथार्थ उपदेश
आपी शक्तो नथी.
आ वाणी नीकळे छे. वाणी तो वाणीना कारणे परिणमे छे, पण ते परिणमन वखते
पाछळ आत्माना सम्यक्भावश्रुतनुं परिणमन निमित्तरूपे वर्ते छे. ज्ञाननी अनुभूतिने
अनुसरती वाणी नीकळशे. कुंदकुंदाचार्यदेवना हृदय आ समयसारमां भर्यां छे. अहा,
भरतक्षेत्रमां केवळी भगवाननी वाणी आ समयसारमां रही गई छे; तेना भाव
समजतां केवळी प्रभुना विरह भूलाई जाय छे.
परिणमन छे,–ए रीते भाववचन ने द्रव्यवचननी संधिपूर्वक आ समयसारनुं
परिभाषण शरू थाय छे.
केवळी अने श्रुतकेवळी भगवंतोनी वाणी सांभळे–ए ते केवो अद्भुत योग! अने वळी
जगतना भाग्ये ते प्रभुए केवळी अने श्रुतकेवळी भगवंतोनी वाणी सांभळे–ए ते केवो
अद्भुत योग! अने वळी जगतना भाग्ये ते प्रभुए केवळी अने श्रुतकेवळी
भगवंतोनी ते वाणी आ समयसाररूपे गूंथी, अखंडधाराए ते समयसार पूरुं थयुं... ने
गुरुप्रतापे आजे बे हजार वर्षे पण ते अखंड