रही छे. वाह! धन्य घडी....धन्य भाग्य!
अमने खबर छे,–पण अहीं विशेषता छे के जेवा सिद्ध छे तेवुं आत्मानुं शुद्धस्वरूप
साध्यरूपे ज्ञानना लक्षमां लईए छीए, एटले ज्ञानने विकल्पथी पार करीने अंतरना
शुद्धस्वरूप तरफ लई थईए छीए, ने ते ज सिद्धनुं परमार्थ ध्यान छे. परिणतिने
अंतरमां वाळीने सिद्ध जेवा आत्मानुं ध्यान करतां अमने जे परमार्थ शांति ने
आनंदनो अनुभव थाय छे–ते कांई असत् नथी, ते सत् छे? के अंतरमां सिद्ध जेवुं शुद्ध
आत्मस्वरूप छे ते सत् छे, तेथी ते सत्ना ध्यानवडे, सत्मां पर्यायनी एकाग्रता वडे
अपूर्व शांति अनुभवाय छे; आ रीते सिद्धने आत्मामां स्थाप्या–तेमां एकलो विकल्प
नथी; पण ज्ञानपरिणति अंतरमां झुकीने सिद्धस्वरूपे पोताना आत्माने ज ध्यावे छे. ते
ज्ञानपरिणति अंतरमां झुकीने सिद्धस्वरूपे पोताना आत्माने ज ध्यावे छे. ते
ज्ञानपरिणतिनुं नाम ज सिद्धनी भावस्तुति छे. (गाथा ३१ मां पण ए वात करी छे;
तत्त्वानुशासनमां पण ए वात करी छे.) राग अने विकल्प ते कांई सम्यग्दर्शननी रीत
नथी, सम्यग्दर्शननी रीत तो विकल्पथी पार एवुं ज्ञान के जे अंतरमां झुके छे–ते ज छे.
चैतन्यतत्त्व रागमां–विकल्पमां न जीरवाय, ए तो सिंहणना दूधनी जेम सोनाना पात्र
जेवी जे ज्ञाननी अंर्तपरिणति तेमां ज जीरवाय.
संसारीजीवोनी संख्या सदाय घटती जाय छे, ६ मास ने ८ समयमां ६०८ जीवोनी
संख्या सिद्धमां वधे छे, ने संसारीजीवो तेटला घटे छे. जे सिद्ध थया तेमांथी कदी पण
एक्केय ओछो थाय तेम बने नहि, ते तो सदाय वृद्धिगत ज छे. तेम आत्मानुं ज्ञान
विकल्पथी अधिक थईने