Atmadharma magazine - Ank 338
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: १४: आत्मधर्म २४९८: मागशर
अंतरमां सिद्धने स्थापे छे (एटले के सिद्ध जेवा शुद्धस्वरूपने पोतामां ध्यावे छे) ते
ज्ञान सदा वृद्धिगत थतुं–थतुं सिद्धपद साधे छे. आवा अपूर्व मंगळसहित समयसार शरू
कर्युं छे. आत्मामां मोक्षना माणेकस्थंभ रोपाय छे.
समयसारना श्रोतामां पण केवी अपूर्व लायकात छे
ते आप पाछळना पाने वांचशो.
एक धन्य प्रसंगनी यादी –
आजे पू. गुरुदेवना श्रीमुखथी १७ मी वखत समयसारनुं भावश्रवण करतां
अपूर्वभावो उल्लसे छे, ने तेनी साथे १६ मी वखतना प्रवचनोनो एक धन्यप्रसंग पण
याद आवे छे. त्रण वर्ष पहेलांंनी वात छे–ज्यारे ‘आत्मधर्म’ ना अंक नंबर ३०० मां
पीरसायेला मंगलप्रवचनना अपूर्वभावो वांचीने गुरुदेव पोते घणा प्रसन्न थया हता.
सिद्धभगवंतोनो साक्षात्कार करावनार ए मंगलप्रवचनना भावो अद्भुत–रोमांचकारी
हता. अहा, शास्त्रकार–टीकाकार अने प्रवचनकारना अद्भुत अलौकिक महिमानी ने
उपकारनी शी वात! आत्मधर्ममां ए प्रवचन वांचतां–वांचतां प्रवचनकारने पोताने
पण एवा भावो उल्लस्या के लखनार प्रत्ये पण प्रसन्नताथी आशीर्वादपूर्वक धन्यवादना
उद्गार नीकळ्‌या. आ बाळकना जीवनमां गुरुदेवनी प्रसन्नतानो ए पण एक धन्य
अवसर हतो. (–जेनी स्मृतिमां प्रमुखश्रीए एक सुवर्णचंद्रक पण करावी आपेल छे.)
आ प्रसंगनो उल्लेख अहीं एटला माटे कर्यो छे के हे साधर्मीजनो! आपणा
महान भाग्योदये गुरुदेव आपणने वारंवार समयसारद्वारा शुद्धात्मा संभळावे छे. तो
हवे आ सोनेरी अवसरमां कोई अपूर्व भावे समयसारनुं श्रवण करीने परिणतिने
शुद्धात्मां सुधी पहोंचाडजो....आत्मधर्ममां समयसारनुं जे रहस्य पीरसाय छे तेने पण
अत्यंत भक्तिसहित, चैतन्यनो उल्लास लावीने वांचजो, ने तेमां गुरुदेवे दर्शावेला
भावोने बराबर लक्षगत करजो.
–ब्र. ह. जैन