Atmadharma magazine - Ank 338
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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मागशर: २४९८ आत्मधर्म : ३९:
• ‘अमे भगवान तीर्थाधिनाथना उपजीवक छीए’ •
[आत्मधर्म अंक ३३७ पृ ८ना लेखनो बाकीनो भाग: कारतक सुद एकम]
तथा भाईबीजना प्रवचनमांथी: नियमसार गा. १३९–१४०

भगवान श्री तीर्थाधिनाथ जिनदेव, तेमना जे उपासको छे तेओ जैन छे.
भगवान केवा छे, तेमनो अंतर्मुखमार्ग केवो छे–तेनुं स्वरूप ओळखीने पोते ते मार्गे
चालनारा छे ते जैन छे. सम्यग्द्रष्टिथी मांडीने गणधरदेव ते बधा जैनो छे. तेमना
कहेला तत्त्वो ते जैनतत्त्व, आत्मानी अनुभूति–श्रद्धा–प्रतीत तो गणधरदेवने अने
नाना सम्यग्द्रष्टिने सरखी छे,
अहो जिननाथ! जेवो आत्मा आपे अनुभव्यो ने कह्यो तेवा ज आत्माने
अनुभवमां लईने अमे अमारी परिणतिमां आत्माने जोड्यो छे, ए रीते अंर्तमुख
शुद्धात्मानी उत्तम भक्तिवडे अमे पण आपना मार्गे आवी रह्या छीए; तेथी अमे
आपना चरणना उपजीवक छीए. आपना मार्गनी उपासना ते ज अमारुं जीवन छे.
जिनमार्ग कहो के आत्माना स्वभावमां अंतमुर्खाकार परिणति कहो, तेवी
परिणतिवाळा जीवो ते जैन छे, तेओ जिनदेवना उपजीवक छे, तेओ तीर्थंकरदेवना
मार्गना सेवक छे. जिनभगवाने जे तत्त्वो कह्यां तेमां मुख्य परमतत्त्व तो पोतानो
शुद्धआत्मा छे; आवा परम तत्त्वने जाणीने तेमां ज अमे अमारी बुद्धिने जोडी छे,
एटले के परिणतिने रागथी छूटी पाडीने परमतत्त्वमां एकाकारपणे स्थापी छे, तेथी
अमने भगवानना मार्गनी उपासना छे, अमे भगवान तीर्थंकरोना उपजीवक छीए,
एटले के तेमनी भक्ति करता करता तेमना मार्गे जई रह्या छीए.
रे जीव! तीर्थंकरोनो आवो मार्ग पामीने अत्यारे आत्मानी लब्धिनो उत्तम
अवसर छे. जगतमां सौथी श्रेष्ठ महिमावंत, जेनी सन्मुखता थतां परम आनंद थाय ने
भवदुःख छूटी जाय–एवा स्वतत्त्वनी उपासना करवानो आ अवसर छे. तो हवे बीजी
चिंतामां तारुं जीवन वेडफीश मा, आत्माना हितमां प्रमाद करीश मा; जगत करतां
आत्मानी परम किंमत समजीने तेमां ज तारा श्रद्धा–ज्ञान जोडजे.