भगवान श्री तीर्थाधिनाथ जिनदेव, तेमना जे उपासको छे तेओ जैन छे.
चालनारा छे ते जैन छे. सम्यग्द्रष्टिथी मांडीने गणधरदेव ते बधा जैनो छे. तेमना
कहेला तत्त्वो ते जैनतत्त्व, आत्मानी अनुभूति–श्रद्धा–प्रतीत तो गणधरदेवने अने
नाना सम्यग्द्रष्टिने सरखी छे,
शुद्धात्मानी उत्तम भक्तिवडे अमे पण आपना मार्गे आवी रह्या छीए; तेथी अमे
आपना चरणना उपजीवक छीए. आपना मार्गनी उपासना ते ज अमारुं जीवन छे.
मार्गना सेवक छे. जिनभगवाने जे तत्त्वो कह्यां तेमां मुख्य परमतत्त्व तो पोतानो
शुद्धआत्मा छे; आवा परम तत्त्वने जाणीने तेमां ज अमे अमारी बुद्धिने जोडी छे,
एटले के परिणतिने रागथी छूटी पाडीने परमतत्त्वमां एकाकारपणे स्थापी छे, तेथी
अमने भगवानना मार्गनी उपासना छे, अमे भगवान तीर्थंकरोना उपजीवक छीए,
एटले के तेमनी भक्ति करता करता तेमना मार्गे जई रह्या छीए.
भवदुःख छूटी जाय–एवा स्वतत्त्वनी उपासना करवानो आ अवसर छे. तो हवे बीजी
चिंतामां तारुं जीवन वेडफीश मा, आत्माना हितमां प्रमाद करीश मा; जगत करतां
आत्मानी परम किंमत समजीने तेमां ज तारा श्रद्धा–ज्ञान जोडजे.