Atmadharma magazine - Ank 338
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: ३८: आत्मधर्म २४९८: मागशर
* आचार्य कुंदकुंदप्रभुनो उपकार *
थोडाक दिवसमां मागशर वद आठम
आवशे, अने कुंदकुंदप्रभुना आशीष
लावशे. आम तो समयसारद्वारा तेओश्री
दररोज आपणा उपर आशीष वरसावी
ज रह्या छे के तमे शुद्धात्मानी अनुभूति
पामो! ते उपरांत मागशर वद आठम ए
तो तेमनी आचार्यपदवीनो महान मंगल
दिवस छे. आचार्य एटले दीक्षा–शिक्षाना
दातार...जेमणे आपणने आत्मअनुभव–
रूप शिक्षा आपी, अने जेओ रत्नत्रयनी
दीक्षाना पण देनार छे–एवा हे
कुंदकुंदप्रभु! आपना परमउपकारने याद
करीने आपना नंदन श्री कहान अने अमे
सौ परमभक्तिथी नमस्कार करीए छीए.
* निर्णयनुं जोर *
हुं ज्ञानस्वभाव छुं–एवो जे खरो
निर्णय छे तेनी संधि ज्ञानस्वभाव साथे
छे, विकल्प साथे तेनी संधि नथी.
ज्ञान अने विकल्प बंने निर्णयकाळमां
होवा छतां, तेमांथी ज्ञानस्वभाव साथे
संधिनुं काम ज्ञाने कर्युं छे, विकल्पे नहि.
ज्ञानस्वभाव साथे संधि करीने,
तेना लक्षे उपडेली ज्ञानधारा अनुभव
सुधी पहोंची जशे.
चैतन्यसिंह ज्ञायकवीर पोताना
पराक्रमनी वीरताथी ज्यां जाग्यो त्यां
तेनी पर्यायना विकासने कोई रोकी शके
नहीं.
* ज्ञानीनी सेवा *
समयसार गाथा ४मां आचार्यदेव
कहे छे के हे जीव! तें तारा एकत्व
ज्ञानस्वभावने पूर्वे जाण्यो नथी, तेमज
बीजा आत्मज्ञ जीवोने ओळखीने तेमनी
उपासना करी नथी; केम के–
ज्ञानीनी सेवा रागवडे थती नथी.
ज्ञानीनी सेवा ज्ञानभाव वडे ज थाय छे.
रागथी भिन्न ज्ञानभावरूपे परिणमे
त्यारे ज जीवे ज्ञानीनी साची सेवा
करी कहेवाय.
ज्ञानीने ओळखीने तेमनी उपासना
करनार जीव पोते ज्ञानचेतनारूपे जरूर
थाय छे.
*
प्रश्न:–परमात्मतत्त्व केवुं छे?
उत्तर:–ते सम्यग्ज्ञाननुं आभूषण छे,
एटले के आवा परमात्मतत्त्वने जाणवुं ते
जाण्या वगरनुं ज्ञान शोभतुं नथी अने ते
परमात्मतत्त्वमां विकल्पसमूहनो सर्वथा
अभाव छे, एटले कोईपण विकल्पो वडे
ते परमात्मतत्त्वमां पहोंचातुं नथी
प्रश्न:–आवुं परमात्मतत्त्व क्यां रहे छे?
उत्तर:–आ आत्मा पोते ज एवुं
परमात्मतत्त्व छे. आत्माने ज्यारे
अंतर्मुख उपयोग वडे अवलोकवामां
पोताना वेदनमां आवे छे.