मागशर: २४९८ आत्मधर्म : ३७:
जगतमां सौथी सुंदर नगरी –
लंका विजय पछी ज्यारे अयोध्यामां राम–लक्ष्मणनो राज्याभिषेक थयो त्यारे
सौने ईच्छित पुरस्कार आप्यो; भरतने पण पूछ्युं–बंधु–तारे कई नगरी जोईए छे?
आपणा राज्यमांथी जे नगरी तने गमती होय ते तुं लई ले.
त्यारे वैरागी भरत कहे छे के बंधुवर! मारे तो मोक्षनगरी जोईए छे. ज्यां
अनंता सिद्धभगवंतो वसे छे एवी परम सुंदर मोक्षनगरीने हुं मारी स्थायी राजधानी
बनाववा मांगुं छुं. आ संसारनी कोई नगरीनो मोह मने नथी. ज्यां कदी दुःख नथी,
ज्यां सदाय एकलुं सुख–सुख ने सुख ज छे, ने ज्यां बधाय सुखी जीवो ज वसे छे एवी
सिद्धनगरीमां हुं कायम रहेवा चाहुं छुं.
राम कहे छे–बंधु! त्यां तो पछी आपणे बंने साथे जईशुं; परंतु अत्यारे हुं तने
कोई सुंदर नगरी आपवा ईच्छुं छुं.
भरत कहे छे–भाई! मोक्षनगरीए जवामां वळी बीजानी सोबत केवी? त्यां तो
जीव एकलो ज जाय छे, बीजानो संग होतो नथी. अने ए मोक्षनगरी करतां सुंदर
बीजी कोई नगरी नथी के जेनी मने ईच्छा होय! मोक्षनगरी ए ज साचुं शाश्वतधाम छे,
ए ज मारो स्वदेश छे. एना सिवाय मृत्युलोकनी तो बधी नगरी नाशवंत अने भाडुती
घर समान छे. हुं तो मोक्षनगरीना ज राहे जवा ईच्छुं छुं. मोक्षनगरी ए ज जगतमां
सौथी सुंदर नगरी छे.
हे बंधुओ, भरतनी जेम आपणे पण–
चलो मोक्षनगरमें.........आनंदके धाममें...
सिद्धोके धाममें.........अपने स्वरूपमें...
प्रकाशन विभाग तरफथी सूचित करवामां आवे छे के गुजराती नियमसार फरी
छपाववानुं छे. तो जेमने विशेष प्रतो लेवानी होय तेओ पोताना मुमुक्षुमंडळने अगर
सोनगढ–संस्थाने तरतमां नोंध करावी दे. मुमुक्षुमंडळ जरूरी प्रतोनो अंदाज सोनगढ
मोकली आपे. जेथी केटली प्रत छपाववी तेनो निर्णय थाय. किंमत लगभग नव रूपिया
थशे. जैन स्वा. मंदिर ट्रस्ट सोनगढ,