Atmadharma magazine - Ank 339
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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३३९
• सुंदर मार्ग •
अहो, जिनभगवाने कहेलो शुद्धरत्नत्रयरूप मार्ग महा
सुंदर छे. पोताना परम तत्त्वमां सर्वथा अंतर्मुख, अने परद्रव्यथी
अत्यंत निरपेक्ष एवो आ सुंदर मार्ग सदा आनंदरूप छे; हे
भव्य! तुं आवा मार्गमां भक्तिपूर्वक सदा परायण रहेजे.
मिथ्यात्वादिमां परायण अज्ञानी जीवो ईर्षाथी आवा सुंदर
मार्गनी पण निंदा करे तो तेथी तुं खेदखिन्न थईने स्वरूपथी
विकळ थईश मा. तुं तो परम भक्तिथी मार्गनी आराधनामां ज
तत्पर रहेजे. तु तारा स्वप्रयोजनने साधवामां तत्पर रहेजे.
निंदा सांभळीने तारा स्वप्रयोजनमां ढीलो थईश मा. जगतथी
निरपेक्षपणे तुं एकलो एकलो अंदर आवा सुंदर वीतरागमार्गने
उत्साहथी साधजे, परम भक्तिथी साधजे...स्वरूपने साधवाना
उल्लासभावमां मोळप लावीश नहीं.
अहा, केवो सुंदर मार्ग! केवो शांत–शांत मार्ग! आवा
सुंदर मार्गने ओळखीने तेनी भावना करवा जेवी छे, एटले के
निजात्मामां उपयोग जोडीने शुद्धरत्नत्रयपरिणति करवा जेवी छे.
वीर सं. २४९८ पोष (लवाजम : चार रूपिया) वर्ष २९ : अंक ३