वार्षिक वीर सं. २४९८
लवजम पष
चर रूपय DEC. 1971
* वष : २९ अक ३ *
“वाह रे वाह समयसार! ”
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[पचास वर्षना घोलननो सुवर्णमहोत्सव]
संवत १९७८ थी मांडीने आज सं. २०२८ ए पचास वर्ष
सुधी एकधारुं समयसारनुं जेमणे घोलन कर्युं छे, ए घोलनमांथी
नीकळतो आनंदमय चैतन्यरस घोळीघोळीने जेमणे पीधो छे ने
श्रोताओने पीवडाव्यो छे, एवा गुरुदेव आ १७मी वखतना
प्रवचनमां महा प्रमोदथी वारंवार आचार्यप्रभुनो महिमा करे छे;
समयसारमांथी अनुभूतिनां अद्भुत भावो खोलतां अति
प्रसन्नताथी कहे छे के अहा! आवुं समयसार सांभळवुं ते पण
जीन्दगीनो एक लहावो छे. अरे, ‘सांभळवुं’ ते पण लहावो छे, तो
तेवी अनुभूति प्रगटे एनी तो शी वात! वाह रे वाह! श्री–
गुरुओए अमारा उपर महेरबानी करीने अमने शुद्धात्मानी
अनुभूति करावी छे. श्रीगुरुनी प्रसन्नताथी अमने अमारो
निजवैभव प्रगट्यो छे. अहा, आत्मामांथी निरंतर सुंदर आनंदनुं
मधुरुं झरणुं झरे छे.
पचास वर्षना प्रसंगने सुवर्णजयंती कहेवाय छे. आजे
आपणने समयसारना पचास वर्षना घोलननो मधुर चैतन्यरस
गुरुदेव पीवडावी रह्या छे, ते रसनुं पान करवुं–ए खरेखर जीवननो
सोनेरी प्रसंग छे. ए रस चाखतां ज एम थाय छे के ‘वाह,
समयसार वाह!