Atmadharma magazine - Ank 339
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९८ आत्मधर्म : १ :
निज वैभव
(समयसार गाथा ५ मागशर सुद १३–१४)
चैतन्यनो मीठो स्वाद...एनी शी वात! एवा मीठा स्वादथी
भरेलुं एक चैतन्यतत्त्व हुं तमने देखाडुं छुं. अहा, अमारा आत्मामां
निरंतर सुंदर आनंदनुं मधुरुं झरणुं झरे छे, अमारी परिणति
आनंदमय थयेली छे....विभावना कलेशथी छूटीने आनंदनो वैभव
अमने प्रगट्यो छे.–आवा निजवैभव वडे हुं समयसारमां शुद्धात्मा
देखाडुं छुं. आना भावो झीलतां तमने पण, ज्ञान अने रागनी
भिन्नता थईने आत्मामां अतीन्द्रिय आनंदनो अनुभव थशे.
आचार्यदेव कुन्दकुन्दप्रभु कहे छे के अहो! जगतमां सुंदर एवुं जे आत्मानुं
एकत्व–विभक्त स्वरूप, ते हुं आ समयसारमां मारा आत्माना निजवैभववडे दर्शावुं
छुं. अद्धरनी कल्पनाथी नथी कहेतो पण भगवान पासेथी जे सांभळ्‌युं छे अने मारा
स्वानुभवमां जे आव्युं छे–ते साक्षात् अनुभवेलुं आनंदमय तत्त्व हुं मारा निजवैभवथी
देखाडुं छुं. हे भव्यजीवो! तमे ते अनुभवगम्य करीने प्रमाण करजो.
निजवैभव केवो छे? ते चार बोलथी कहे छे:–
(१) अरिहंतदेवना उपदेशरूप शब्दब्रह्मनी उपासनाथी जेनो जन्म छे, एटले के
अमारो सम्यग्दर्शनादि आत्मवैभव प्रगटवामां श्री वीतराग अरिहंतदेवनी
वाणी ज निमित्त छे; जिनवाणीमां जेवो कह्यो तेवो शुद्धाआत्मा अनुभवीने
अमने निजवैभव प्रगट्यो छे. आनाथी विरुद्ध निमित्त प्रत्ये जेनुं वलण होय
तेने आत्मानो वैभव कदी प्रगटे नहीं.
(२) कुयुक्तिओनुं खंडन करनारी निर्दोष युक्तिना अवलंबनवडे जेनो जन्म थयो छे;
मति–श्रुतज्ञाननी निर्मळ युक्तिओ वडे शुद्धाआत्मानुं स्वरूप सिद्ध करीने तेने
अनुभवमां लीधुं छे.
(३) तीर्थंकरदेव परमगुरुथी मांडीने मारा गुरुपर्यंत–ते बधा गुरुओ निर्मळ
विज्ञानघन आत्मामां अंतर्मग्न हता, चैतन्यना वीतरागी आनंदने
अनुभवनारा हता, एवा गुरुओए प्रसन्न थईने, प्रसादीरूपे अमने
शुद्धआत्मतत्त्वनो उपदेश आप्यो, तेना