Atmadharma magazine - Ank 339
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 36 of 57

background image
: पोष : २४९८ आत्मधर्म : ३३ :
* पोताना एकत्वमां शोभतुं
महान चैतन्यतत्त्व. *
आत्मा सम्यग्दर्शनादि भावमां वस्यो ते ज साचुं वास्तु
न्त्त् र् र्
अहा, आत्मानुं सुंदर एकत्व–विभक्त स्वरूप संतो बतावे
छे. तेनी अपूर्व प्रीति लावीने श्रवण करवा जेवुं छे, ने जगतनो
परिचय छोडी, प्रेमथी आत्मानो परिचय करी अंदर तेनो अनुभव
करवा जेवुं छे. आवा अनुभवमां परम शांति प्रगटे छे ने अनादिनी
अशांति मटे छे. आत्माना आवा स्वभावनुं श्रवण–परिचय–
अनुभव दुर्लभ छे पण अत्यारे तेनी प्राप्तिनो सुलभ अवसर
आव्यो छे. माटे हे जीव! बीजुं बधुं भूलीने तुं तारा शुद्धस्वरूपने
लक्षमां ले... ने तेमां वस... ए ज मंगल–वास्तु छे.
[मागशर सुद ७ : सोनगढमां वृजलाल भाईलाल बरवाळावाळाना मकान
(मंगलम्) ना वास्तुप्रसंगे समयसार गाथा ३ उपरना प्रवचनमांथी.]
आत्मामां सिद्धने स्थापीने, आत्मानुं शुद्धस्वरूप आचार्यदेव देखाडे छे. जीव
पोताना एकत्वस्वरूपमां, कर्मना संग वगरनो रहे ते ज शोभे छे एटले के
सम्यग्दर्शनादि भावरूपे परिणमेलो जीव ज सुंदरपणे शोभे छे; अज्ञानरूपे परिणमे ने
कर्मथी बंधाय ते जीवने शोभतुं नथी. जगतना बधाय पदार्थो पोतपोताना स्वरूपमां
एकत्वपणे शोभे छे, तो जीवने द्वैतपणुं–परसमयपणुं केम शोभे? ते वात त्रीजी
गाथामां कहे छे.
परथी भिन्न चैतन्यमय पोताना अस्तित्वने जाणीने, पोताना एकत्वस्वरूपमां
रहेवुं ते ज उत्तम निजघरमां वास्तु छे. जीव पोतानी चैतन्यवस्तुने भूलीने कोई
नानामां नाना सूक्ष्म विकल्पमांय पोतापणुं मानीने तेमां एकत्वपणे वर्ते–तो जीवने ते
शोभतुं नथी. अरे बापु! क्यां तारी चैतन्यजात! ने क्यां रागनी जात! प्रभु! तारी
अचिंत्य