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अमारा आ अपूर्व निधान मळ्या, हवे आ निधान पासे जगतने अमे सदा तृणवत्
देखीए छीए.–आम पोताने पोताना निधाननो अचिंत्य महिमा आव्यो छे; ते पोते
परमवैराग्यथी, शांतचित्तथी, गुप्तपणे पोताना आनंदनिधानने एकलो भोगवे छे;
आनंदथी स्वकार्यने करतो–करतो ते मोक्षने साधे छे. सर्वे तीर्थंकरादि पुराण पुरुषोए आ
रीते आत्माना अनुभवरूप स्वकार्य करीने आत्मानी आराधना करी, ते
आत्मआराधनाना प्रसादथी तेओ केवळज्ञानी थया; अने तेमना मार्गे अमे पण
आत्मआराधनारूप स्वकार्य करी रह्या छीए.
निर्दोष सुखनो अभिलाषी थयो ते जीव श्री ज्ञानीगुरु पासे थईने धर्म प्राप्ति करे
छे–एटले के शीघ्र परमात्मतत्त्वमां प्रवेश करे छे. श्रीगुरुए जे परमतत्त्व बताव्युं ते
समजीने परम प्रमोदथी तेमां प्रवेश करे छे एटले के तेनो अनुभव करे छे: अहा!
मारुं परमात्मतत्त्व श्रीगुरुए मने देखाडयुं. मारुं आ तत्त्व प्राप्त थतां मारुं चिंत
परम परम शांत थयुं छे. मारुं तत्त्व स्वयं नित्य आनंदवाळुं छे, अचिंत्य गुणोथी
शोभतुं छे अने दिव्य ज्ञानवाळुं छे. श्रीगुरुए आवुं ज तत्त्व बताव्युं; शरीरवाळुं के
रागनी क्रियावाळुं आत्मतत्त्व न कह्युं पण तेनाथी भिन्न तत्त्व ज्ञान ने आनंदस्वरूप
बतावीने तेमां प्रवेश करवानुं कह्युं.–श्रीगुरुना उपदेशअनुसार आवा परमतत्त्वरूपे
पोताने देखतां ज जीव तेमां प्रवेश करे छे एटले के परिणाम तेमां ज मग्न थाय छे.
पोतानुं आवुं परमात्मतत्त्व जाणे ने तेमां जीवनां परिणाम न ठरे एम केम बने?
परमात्मतत्त्व पोते सहज ज्ञान–आनंद वगेरे अनंतगुणना निर्मळभावे परिणमे
छे. आवा स्वतत्त्वनी प्राप्ति–अनुभूति ते ज मुमुक्षुनुं जरूरी कार्य छे. आनाथी
बाह्य बीजी कोई शुभक्रियाओ ते कांई मोक्ष माटे जरूरी नथी एटले के ते कांई
मोक्षनुं कारण थती नथी. मोक्ष माटे जरूरी क्रिया एटले के निश्चय आवश्यक, ते तो
शुभविकल्पोथी विपरीत छे; विकल्पो तो परद्रव्यना आश्रये छे, ने मोक्षना कारणरूप
आवश्यकक्रिया तो शुद्ध स्वद्रव्यना आश्रये छे. आम जाणीने धर्मीजीव स्वद्रव्यमां
प्रवेशीने एकलो एकलो पोताना चैतन्यनिधानने अनुभवे छे. आवा अनुभववडे
मुमुक्षुजीव मोक्षने साधे छे, ते ज तेनुं स्वकार्य छे.