Atmadharma magazine - Ank 339
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९८ आत्मधर्म : ३१ :
चैतन्य रत्नोनी खाण प्रगटी छे, सम्यकत्वादि मारा अनंत गुणोनी संपत्ति मने
मळी छे, तेनी पासे जगतनी शी किंमत?–आ रीते चैतन्यसंपदा पासे ज्ञानी
जगतने तृणवत समजीने, आत्मआराधनारूप स्वकार्यने साधे छे. हे मुमुक्षु! आ
ज तारे अवश्य करवानुं कार्य छे. आ रीते मुमुक्षुजीव आनंदथी पोताना स्वकार्यने
साधे छे.
आत्मसाधनाना महान आनंद पासे जगत सामे शुं जोवुं?
अहा, मारा आत्माना परम आनंदने हुं साधी रह्यो छुं; आत्माना आ आनंद
पासे जगतना संग तरफ वलण ज रहेतुं नथी. जीव चैतन्यनी एकाग्रताथी बहार
नीकळे त्यारे परसंग थाय ने चित्त व्यग्र रागी–द्वेषी थाय, ते तो जन्म–मरणना रोगनुं
ज कारण छे. परसंग एटले तेना तरफनो उपयोग, तेमां चित्त चंचळ थाय छे. माटे हे
मुमुक्षु! बहारमां परचीज होवा छतां तेनाथी परम विरक्त थईने तारा चित्तने अंदर
शांतिथी भरेला चैतन्यतत्त्वमां ज जोड, ने तारा स्वकार्यने साध. बुद्धि–वडे एटले के
भेदज्ञानवडे परथी आत्माने जुदो अनुभव्यो छे–एवो ज्ञानी महा आनंदमय
चैतन्यतत्त्वमां परिणाममां जोडे छे ने आत्मा सिवाय आखी दुनियाथी अत्यंत उदासीन
रहे छे. आ रीते आत्माना सहजस्वरूपने साधे छे. आत्मसाधनाना महान आनंद पासे
जगत सामे शुं जोवुं?
अहा, आत्मानो परम आनंद ज्यां चाख्यो त्यां ए वीतरागरस पासे
जगतना रागनो रस केम रहे? परतरफनी वृत्तिमां तो कलेश छे, तेमां आनंदनी
गंध पण नथी. मारुं स्वतत्त्व लक्षमां लेतां ते तो अनाकुळ शांतरसपणे
अनुभवाय छे; एना वेदन पासे जगत रस वगरनुं तरणांसमान भासे छे.
चैतन्यरसनो रस चाख्यो त्यां कषायनो रस केम गमे? अरे, चैतन्यतत्त्वना
आनंदमां एक शुभविकल्पनोय बोजो क्यां पालवे छे? आंखमां तो कणुं कदाच
रही शके, पण चैतन्यना शांतरसमां कषायनो कणियो रही शके नहीं, शुभरागनोय
कण तेमां रही शके नहीं. आवा शांतरसना धाम तारा चैतन्यनिधानने हे मुमुक्षु!
तुं एकलो–एकलो साधजे, तेमां जगतना बीजा कोईनी अपेक्षा राखीश नहीं.
जगतना पंथथी चैतन्यना पंथ नीराळा छे. चैतन्यना सुखनो मार्ग अंदर पोतामां
ज समाय छे, पोतानी परिणति पोतामां ज एकाग्रपणे परमआनंदने अनुभवे
छे, आनंद माटे कांई बहार जगत सामे जोवुं पडतुं नथी. ज्यां तारा अगाध
निधान भर्या छे तेमां जोतां तने परम ज्ञान–आनंदना निधान प्रगटशे. अनादिथी