Atmadharma magazine - Ank 339
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: ३० : आत्मधर्म : पोष : २४९८
चैतन्यरसना निधानने ज परम प्रीतिथी पोताना स्वघरमां बेठो बेठो गुप्तपणे
भोगवे छे.–अहा, एना अंर्तवेदननी शी वात! लोको एने क्यांथी देखी शके?
ज्ञानीनां गुप्त चैतन्यनिधानने जगत देखी शकतुं नथी. पण जगतने देखाडवानुं शुं
काम छे? जगत न देखे तेथी शुं? हुं तो मारा निधानने मारामां प्रगटपणे
अनुभवी ज रह्यो छुं.–एम धर्मी निःशंकपणे पोताना गुप्तनिधानने पोतामां भोगवे
छे, तेनी रक्षा करे छे. चैतन्यना अगाध निधान पासे जगतनी विभूतिने ते तरणां
समान देखे छे, एटले मुमुक्षुए जगतथी असंग थईने पोते पोताना परम
आनंदनिधानने ज साधवा जेवुं छे; बीजा माटे क्यांय रोकावा जेवुं नथी; बीजाना
संगे तो तारुं चित्त चंचळ थशे ने आकुळता थशे एटले ध्यानमां विघ्न थशे. माटे
चैतन्यना आनंदमय ध्याननी सिद्धिअर्थे मुमुक्षुजीव परसंग छोडे छे, ने गुप्तपणे
एकलो पोताना ज्ञाननी रक्षा करीने स्वकार्यने साधे छे. आ रीते मुमुक्षुए परम
वैराग्यथी, चैतन्यना संगे स्वकार्यने साधवुं. पोताने मळेला परम ज्ञानतत्त्वने
पोतामां बराबर साचववुं. विपरीत जनोना संगथी दूर, पोतामां गूढ थईने
गंभीर ज्ञानतत्त्वमां रहेवुं–जेमां कोई विकल्पनोय संग नथी.
अहा! जेमां सर्वज्ञशक्ति, अतीन्द्रिय आनंद, निर्विकल्प शांति एवा अनंत
चैतन्य निधान खुल्ला देखाय छे एवा पोताना गुप्त चैतन्य निधानने पामीने हे
ज्ञानी! तुं तारामां ज भोगव. तारा अमूल्य ज्ञाननिधाननी तुं रक्षा करजे.
परमतत्त्वना जे अपूर्व श्रद्धा–ज्ञान–शांति प्रगट्या छे तेनी रक्षा करजे एटले गमे
तेवा प्रसंगे पण तेमां विपरीतता थवा न दईश. जगत तारी वात न माने, खोटी
कहे, विरोध करे, निंदा करे, के रोगादि कोई पण प्रतिकूळता आवे तोपण तारा
श्रद्धा–ज्ञान–शांतिने छोडीश नहीं, अमूल्य निधाननी जेम तेने साचवजे. तारा
श्रद्धा–ज्ञाननी रक्षाने माटे हे मुमुक्षु! संसारना अनेक प्रकारना रागी–द्वेषी–अज्ञानी
जीवोना संगथी तुं दूर रहेजे. जगतना संगे तारी आत्मशांतिमां भंग पडवा दईश
नहीं; जगतथी विरक्तपणे तारा स्वकार्यने साधवामां तत्पर रहेजे. हुं मारा
चैतन्यना निधाननी सन्मुख परिणम्यो छुं–पर्यायमां ते निधान प्रगट थया छे, पछी
जगतना कोलाहलनुं मारे शुं काम छे? बहारमां बीजाना संगनुं मारे शुं प्रयोजन
छे? हुं तो मारा आत्मानी ज भावनामां ऊंडेऊंडे ऊतरीने मारा स्वकार्यने साधी
रह्यो छुं. गरीबने सोनानी खाण मळे तेम मने मारा अचिंत्य चैतन्यना निधान
मारामां मळ्‌या छे...परम