Atmadharma magazine - Ank 339
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९८ आत्मधर्म : ३५ :
छे ते पुद्गलपणे ज शोभे छे, पुद्गलपणुं छोडीने ते कदी जीवादिरूप थतुं नथी;
धर्मास्तिकाय वगेरे पण पोतपोताना स्वरूपे ज शोभे छे; जो तेम न वर्ते ने एकबीजाना
रूपे थई जाय तो पदार्थ शोभे नहीं एटले के तेना स्वरूपनुं अस्तित्व ज न रहे,
बीजामां भेळसेळ थई जाय के अस्तित्वनो लोप थई जाय. ए रीते जगतनां बधा
पदार्थो ज्यारे पोतपोताना निश्चित स्वरूपमां ज एकत्वपणे रहेला शोभे छे, तो पछी
जीव पण पोताना चैतन्यस्वरूपमां ज एकत्वपणे रहे ते शोभे छे; चैतन्यस्वरूप जीव
चैतन्यपरिणामने बदले दुःखपरिणाममां रहे ने पुद्गलकर्मना संगमां रहे–एवुं द्वैतपणुं
तेने शोभतुं नथी. परथी भिन्न एवा पोताना निश्चित चैतन्यस्वरूपने जाणीने तेमां ज
एकत्वभावे परिणमे तो तो दुःख न थाय, कर्मनो संबंध न थाय, चैतन्यभाव
चैतन्यपणे छूटो ने छूटो ज रहे, तेने बंधन थाय नहीं; एटले पोताना सहज ज्ञान–
आनंदमय स्वरूपथी ते शोभे छे. आवुं शोभतुं कल्याण–मंगलमय निजघर तेमां वसवुं
ते वास्तु छे; आवा आनंदमय स्वघरने बदले रागना दुःखमय घरमां रहेवा कोण जाय?
अने जडना घरने पोतानुं कोण माने? जडथी जुदुं, रागथी जुदुं आनंदमय निजघर ते
ज तारुं उत्तम रहेठाण छे, तेने ओळखीने तेमां वसतां परमसुखथी आत्मा शोभे छे–ते
ज सुंदर छे. आवा स्वघरमां आवतां ज दुःखना दहाडा दूर थाय छे ने सुखनां अगाध
निधान प्रगटे छे.
जगतमां जीव सिवायनां पांच अजीव पदार्थो छे तेओ पोतपोताना अजीव–
धर्मोमां ज सदा अंतर्मग्न रहीने, पोताना स्वगुण–पर्यायोने ज चुंबे छे–तेमां ज तन्मय
रहे छे पण बीजारूपे कदी थता नथी; तेथी तेओ पोताना एकत्वस्वरूपे शोभे छे; तो आ
जीवपदार्थ पण पोताना अनंत जीवधर्मोमां सदा अंतर्मग्न रहे, पोताना स्वकीय शुद्ध
गुण–पर्यायोमां स्वधर्मने चुंबीने–तेमां तन्मय रहीने वर्ते, ने विरुद्धधर्मरूपे (रागादि
परभावरूपे) न वर्ते, तेमां ज तेनी शोभा छे. चैतन्यमय गुण–पर्यायरूप जे पोताना
स्वधर्मो तेमां ज जीव शोभे छे; परसाथे भेळसेळ करवा जाय ने चेतनने बदले
रागपणे–दुःखपणे वर्ते ते जीवने शोभतुं नथी.
आत्मा पोताना गुण–पर्यायरूप धर्मोने स्पर्शे छे–तेमां एकमेक थईने रहे छे,
पण बीजा कोई पदार्थने ते स्पर्शतो नथी; अनंता पदार्थो भले एकक्षेत्रे रह्या, तोपण
तेओ एकबीजामां जराय भळतां नथी, सौ जुदेजुदा पोतपोताना स्वगुण–पर्यायोमां ज
रहे छे. आत्मा अने शरीर अनादिकाळथी एकक्षेत्रे रहेवा छतां,