Atmadharma magazine - Ank 339
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: ५२ : आत्मधर्म : पोष : २४९८
विविध समाचार–
* सोनगढमां प्रवचनमां सवारे नियमसार पुन: शरू थयुं छे, ने बपोरे
समयसारनुं १७ मी वखत वांचन चाले छे,–१७ मी वखत होवा छतां जाणे
पहेली ज वार कोई अपूर्व भावे सांभळता होईए–एवा सरस भावो खीले छे.
* गुजराती नियमसार फरी छपावानुं नक्की थयुं छे, ते बाबत सूचना गतांकमां
आवी गई छे. विशेष प्रतो जोईए तेमने ते नोंधावी देवा सुचना छे.
* आ वर्षे कारतक मासनी अष्टाह्निका दरमियान तेरहद्वीप पूजन विधान करी
शरू थयुं छे. आ विधान ध्रांगध्राना समजुबेन गोविंदजी कोठारी (ते चंचळबेन
बरवाळावाळाना बहेन) तरफथी कराववामां आव्युं हतुं.
* आ सालमां जिनबिंब–प्रतिष्ठा वगेरे निमित्ते गुरुदेवना विहारना कार्यक्रमनी
रूपरेखा लगभग साडात्रण मासनी विचारवामां आवी छे. तेनी विगवार नोंध
आवता अंके आपीशुं. अमरेलीमां जिनबिंब–वेदीप्रतिष्ठानुं मूरत फागणसुद
पांचमे छे, तथा फत्तेपुरमां वेशाखसुद त्रीजनुं मूरत छे.
* सागर (मध्यप्रदेश) मां शेठश्री भगवानदासजी शोभालालजी तरफथी जैनधर्म–
शिक्षण शिबिरनुं भव्य आयोजन गतमासमां थयुं हतुं, तेमां हजारो
जिज्ञासुओए तत्त्वज्ञाननो लाभ लीधो हतो, अने महान प्रभावना थई हती.
* देशकाळना हालना वातावरणमां तत्त्वज्ञानना प्रचारनी खूब आवश्यकता छे; ते
माटे वधुने वधु साहित्य,–बाळको के वृद्ध सौने उपयोगी थाय तेवुं, अने सौने
आत्महितनी प्रेरणा आपे तेवुं, प्रचार करवानी खूब जरूर छे. ज्यां
जिनेन्द्रभगवानना दर्शन माटे खास जरूर होय त्यां तो जिनमंदिर थाय ते
बराबर छे; पण जरूर वगर वधु पडता मंदिर वगेरे पाछळ मोटा खर्च करवा
करतां वीतरागी तत्त्वज्ञाननो घरेघरे प्रचार थाय–ते माटे लक्ष आपवुं वधु जरूरी
छे.–एम आजे सर्वे विद्वानोनो मत छे. समाजे आ वात लक्षमां लेवा जेवी छे.