Atmadharma magazine - Ank 339
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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आपणुं सौनुं उत्तम ध्येय
आपणे सौ मुमुक्षुओ एक उच्च ध्येयने वरेला छीए–अने ते ध्येय छे–
आत्म–कल्याण! अहा, आत्मकल्याण केम थाय ते मार्ग गुरुदेवना प्रतापे आपणा
हाथमां आव्यो छे, अने ते ज आ आत्मधर्ममां पीरसाय छे. संपूर्णपणे
आत्महितने ज लक्षमां राखीने, स्व–परने वीतरागभावनी पुष्टि थाय ए रीते
आत्मधर्मनुं संपादन थाय छे. अने आवा ध्येयपूर्वक आत्मधर्मनी स्वाध्याय
करनारा जिज्ञासुओने जरूर आत्महितनी प्रेरणा अने पुष्टि मळे छे.
संपादकने पू. गुरुदेवनी मंगलछायामां पोताना २९ वर्षना अनुभवथी
निःशंक खातरी छे के आत्मधर्ममां जे कोई भावो आवे छे ते संपूर्णपणे वीतरागी
देव–गुरु–धर्मने अनुसरीने ज आवे छे. गुरुदेवे महान कृपा करीने जिनागमना
गंभीरभावो आपणने समजाव्या छे. ए गंभीरभावोना अभ्यासमां एवी शांति
छे के जगतना कोई वादविवादने तेमां स्थान नथी, राग–द्वेष–अशांतिनुं तेमां
नामनिशान नथी. आवा गंभीर भाववाळी चैतन्यप्रकाशी वाणी आत्मधर्ममां
रजु थाय छे; साथे साथे देवगुरुनो अपार महिमा, धार्मिक वात्सल्य, विशेष
प्रभावनाने लगता समाचारो वगेरे पण प्रसंगोपात रजु थाय छे..हजारो
जिज्ञासुओ प्रेमपूर्वक ते वांचे छे, प्रसन्नता व्यक्त करे छे, सलाहसूचना पण
मोकले छे. आप पण आत्मधर्मना वधु विकास माटे सलाहसूचना मोकली शको
छो. आत्मधर्म माटे योग्य नाना टचूकडा लेखोने पण आवकारीए छीए.
आत्मधर्म आपणुं सौनुं छे...जिनशासन आपणुं सौनुं छे; जिनशासनना
धर्मध्वजनी मंगलछायामां आपणे सौ एक छीए. –
जयजिनेन्द्र
‘आत्मधर्म’ मासीक दरमहिने पचीसमी तारीखे, बराबर चेकींगपूर्वक
रवाना थाय छे. पहेली तारीख सुधीमां न मळे तो तुरतमां “आत्मधर्म
कार्यालय, सोनगढ–सौराष्ट्र” ने आपना पूरा सरनामा सहित लखवाथी बीजो
अंक मोकलाय छे. लवाजम चार रूपिया छे,–तेमां पण किंमती पुस्तको भेट मळे
छे. जेम बने तेम वेलासर ग्राहक थई जवुं सारूं छे. हाल गुजराती आत्मधर्मनी
त्रण हजार नकल छपाय छे–जे अत्यार सुधीना वर्षोमां सौथी वधारे छे. ए
रीते आत्मधर्म उन्नति करी रह्युं छे, अने वधुने वधु जिज्ञासुओ तत्त्वज्ञानमां
रस लई रह्या छे. आप पण आत्मधर्म द्वारा अध्यात्मरसनुं पान करो.