Atmadharma magazine - Ank 340
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : आत्मधर्म : माह : २४९८
• कुलाल गामना उद्यानमां रिष्टामच्य नामना वेरीए मुनिओना रहेठाणने आग
लगाडी, तेमां दग्ध थवा छतां मुनिओनी सभासहित वृषभसेन मुनिराजे
आराधना प्राप्त करी.
––आ प्रमाणे उपसर्गादि वेदनाप्रसंगे पण आराधनामां अडग रहेनारा अनेक
शुरवीर मुनिवरोनुं स्मरण करावीने, आचार्यमहाराज ते क्षपकमुनिने उत्साहित करतां
कहे छे के के मुनि! आटला–आटला मुनिवरोने तीव्र वेदनानी पीडा हती, असहाय
एकाकी हता, कोई ईलाज करनार के वैयावृत्य करनार पण न हतुं, छतां कायरपणुं
छोडी, वीरतापूर्वक परमधैर्य धारण करी तेओ उत्तम अर्थने पाम्या, आराधनाथी डग्या
नहीं; तोपछी तमने तो आ बधा मुनिओ सहायमां छे, सर्वे संघ तमारा ईलाजमां अने
वैयावृत्यमां तत्पर छे, तो तमे आराधनामां उत्साहित केम नहीं बनो?–कायरपणुं
छोडो, ने वीरतापूर्वक आराधनामां उद्यमी बनो. आराधनानो आ अवसर छे.
अहा, अनेक घोरातिघोर उपसर्ग आववा छतां ते प्रसिद्ध मुनिओए एकाकीपणे
ते सह्यां पण साम्यभावने न छोड्यो; प्राणरहित थया पण आराधनामां शिथिल न
थया, ने आत्मकल्याण कर्युं. तो हे मुनि! तमने तो आचार्य वगेरे महान ज्ञानी दयावान
धैर्यवान परमहितोपदेश संभळावी रह्या छे, शरीरनी वैयावृत्त्य करवामां सावधान छे,
अने योग्य ईलाज करवामां तत्पर आखो संघ सहायक छे, वळी एवो कोई तीव्र
उपसर्गादि पण आव्यो नथी, तो आवा अवसरमां उत्तम आराधनामां तमे केम ढीला
थाव छो? अत्यारे तो आत्माने उत्साहित करवो योग्य छे; माटे कायरता छोडो ने
धीरता अंगीकार करो.
हे मुनि! समस्त संघनी वच्चे जिनेन्द्रदेवना अमृतरूप मधुर वचनो तमारा काने
पड्या, ते सांभळीने हवे तमे उत्तम अर्थरूप चार आराधनाने आराधवा समर्थ छो.
जिनेन्द्र भगवानना वचननुं श्रवण तो अमृत एटले के मोक्ष, तेना आत्मिकसुखनो
साक्षात् अनुभव करावे छे अने मोक्ष आपे छे; तेथी जिनवचन अमृत जेवां मीठां छे.
आवा जिनवचन जेना कर्ण द्वारा हृदयमां प्रवेश करे ते पुरुष चारे आराधनारूपे
परिणमवामां असमर्थ केम होय?
अरे क्षपक! अहीं तमने एवुं ते शुं दुःख आवी पड्युं छे के जेथी शिथिल थई
जाव छो? आ संसारमां परिभ्रमण करतां तमे नरकगति, तिर्यंचगति,