Atmadharma magazine - Ank 340
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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३४०
एक जिज्ञासुए पूछ्युं––आत्मानो जे धर्म आप
बतावो छो ते धर्म दुनियामां बीजे क्यांय हशे खरो?
–हा. स्वर्गमां छे, नरकमां छे, तिर्यंचमां छे,
मनुष्योमां छे; ऊर्ध्वलोकमां छे, मध्यलोकमां छे, ने
अधोलोकमांय छे. स्वर्गमां असंख्याता जीवोने
आत्मानो आवो धर्म प्रगट्यो छे, नरकमांय असंख्याता
जीवो आवो धर्म समजीने सम्यग्दर्शन पाम्या छे,
तिर्यंचमांय असंख्याता जीवो आवो धर्म पाम्या छे, ने
मनुष्योमां अबजो जीवो आवा धर्मने ओळखीने
आराधी रह्या छे. त्रणे काळे त्रणेलोकमां आ आत्माश्रित
वीतरागी धर्म जयवंत छे. जे कोई जीवो सिद्धपद पामशे
तेओ आ धर्मनी आराधनावडे ज सिद्धपदने पामशे.
माटे भक्तिपूर्वक आ धर्मने ओळखीने आराधो.

तंत्री: पुरुषोत्तमदास शिवलाल कामदार संपादक: ब्र. हरिलाल जैन