Atmadharma magazine - Ank 340
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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वार्षिक वीर सं. २४९८
लवजम मह
चर रूपय JAN.1972
वर्ष : २९ अंक ४
धन्य गुरु!
साक्षात् भेटीने नीकळती वीतरागी
संतोनी वाणी परमात्मानो भेटो
करावे छे. स्वानुभवी गुरुओनो
उपदेश झीलतां आत्मामां आनंदरसनुं
झरणुं झरे छे. अहा, धन्य गुरु! के
जेमणे आत्मानी पूर्ण चैतन्यसंपदा
बतावीने आत्माने अनंत सिद्ध
भगवंतोनी पंकितमां बेसाडी दीधो.
निर्दोष गुरुनो वीतरागी उपदेश रागथी भिन्नता करावीने
महा आनंदमय चैतन्यधाममां प्रवेश करावे छे, ने रागना स्वादथी
तद्न जुदो एवो चैतन्यरसनो स्वाद चखाडे छे.
अहा, गुरुना उपदेशथी आनंदधाम आत्माने जेणे जाणी
लीधो तेणे जिनेन्द्रदेवना मार्गने जाण्यो; आत्मा तो मोटो शांत
वीतरागरसनो दरियो छे, तेनी सन्मुख थतां जे शांतिनी
अनुभूति थई ते ज निर्वाणनो मार्ग छे, ते ज भगवान
तीर्थंकरोनो मार्ग छे, ते ज महा आनंदनो मार्ग छे. ते मार्गे
अमे जईए छीए.
धन्य गुरु...धन्य मार्ग!