एकाग्र थया त्यां तेमां कोई चिंता नथी, दुःख नथी. बहारनी चिंता छोडीने, अंतरमां
द्रष्टि जोडीने, शुद्धस्वभावनो अनुभव करवो ते एक ज मुक्तिनो पंथ छे, एना सिवाय
बीजा कोई मार्गमां मुक्ति नथी, नथी.
छीए. एमां विभावो छे ज नहीं पण तेनी चिंता शी? जुओ तो खरा! धर्मी जीव
निश्चितपणे, निर्भयपणे स्वतत्त्वने अनुभवे छे. अरे, जगतनी चिंता अमारामां केवी?
अमारा आनंदमय स्वतत्त्वमां परनी चिंता केवी? अमारी शांत–नीराकूळ अनुभूतिमां
चिंताना दुःखनो बोजो केवो? अमारा ज्ञानमां तो अमारुं आखुं चिदानंदतत्त्व बिराजी
रह्युं छे, ते ज्ञानमां परभावनो बोजो नथी. ज्ञान परभावोथी छूटुं पडीने अंतरना
परमात्मतत्त्वमां लीन थयुं ते ज्ञान आनंदपूर्वक मोक्षने साधी ज रह्युं छे.
चिंता छोडीने, अमारा शुद्धतत्त्वने एकने ज आनंदपूर्वक अनुभवीए छीए. आवो
अनुभव करीने संतो पोते न्याल थया छे, अने जगतने पण तेनी रीत बतावीने न्याल
कर्युं छे.
मोक्षमां आवी रह्यो छुं. प्रभो! मारा ज्ञानमांथी परभावोना बधा बोजा में काढी नांख्या
छे. धर्मात्माने पोताना अनुभवथी नक्की थई गयुं छे के अमारी चेतनाना स्वानुभवमां
परभावनो अंश पण नथी, एवी चेतना वडे अमे मोक्षने साधी ज रह्या छीए पछी
बीजी चिंतानुं शुं प्रयोजन छे? चेतना प्रगटी त्यां चिंताना तो चूरा थई गया. आ
संसार टाळुं ने मोक्ष करुं–एवी चिंता पण स्वानुभूतिमां नथी. अमारुं एक परम तत्त्व
ज अमारा अंतरमां निरंतर प्रकाशी रह्युं छे.–आ बुधपुरुषोनो अनुभव छे.