Atmadharma magazine - Ank 340
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म : माह : २४९८
वेदनामां धैर्यधारण नहीं करे? करशे ज. गमे तेवो रोग आवे तोपण उत्तम
पुरुषो अयोग्य औषध (कंदमूळ वगेरेनुं भक्षण) करतां नथी. नानी–मोटी आपदा
आवतां जे विषाद करे छे तेने वीरपुरुषो कायर कहे छे. घैर्यवान सत्पुरुषोनो तो एवो
स्वभाव छे के महान आपदा आवे तोपण तेमना परिणाम समुद्र जेवा अक्षोभ अने
मेरु जेवा अचल रहे छे.
समस्त परिग्रह छोडीने जेणे पोताना आत्माने आत्मस्वरूपमां ज स्थिर कर्यो छे
अने श्रुतज्ञान जेमनुं साथीदार छे–एवा कोई उत्तम साधु, सिंह–वाघनी दाढ वच्चे पण
उत्तमार्थ एवा रत्नत्रयने साधे छे, कायर बनीने शिथिल थता नथी.
(एवा धीरवीर मुनिराजनां द्रष्टांत कहे छे–)
• शियाळीयां वडे त्रण रात सुधी भक्षण करवाथी जेना शरीरमां घोर वेदना उपजी छे
एवा, ते तत्काळदीक्षित सुकुमारमुनि ध्यानवडे आराधनाने पाम्या.
• भगवान सुकोशल नामना मुनि–के जेमनी माताए वाघण थईने तेमनुं भक्षण कर्युं,
तोपण तेओ उत्तम अर्थने (एटले के रत्नत्रयना निर्वाहने) पाम्या.
• चाळणीनी जेम खीला वडे देह वींधावा छतां भगवान गजकुमार मुनि उत्तम अर्थने
पाम्या.
• हे मुनि! देखो, सनत्कुमार नामना महामुनिए सेंकडो वर्ष सुधी खाज–ताव–तीव्र–
क्षुधा–तृषा, वमन, नेत्रपीडा अने उदरपीडा वगेरे अनेक रोगजनित दुःखोने
भोगववा छतां, संकलेश वगर सम्यक्पणे सहन करता थका धैर्यपूर्वक रत्नत्रयधर्मनुं
पालन कर्युं.
• एणीकपुत्र नामना साधुए गंगा नदीना प्रवाहमां तणावा छतां निर्मोहपणे चार
आराधना पामीने समाधिमरण कर्युं, पण कायरता न करी. माटे हे कल्याणना अर्थी
साधु! तमारे पण दुःखमां धैर्य धारण करीने आत्महितमां सावधान रहेवुं उचित छे.
• भद्रबाहु मुनिराज घोरतर क्षुधावेदनाथी पीडित थवा छतां संकलेशरहित बुद्धिनुं
अवलंबन करता थका, अल्पाहार नामना तपने धारण करीने उत्तमस्थानने पाम्या;
पण भोजननी ईच्छा न करी.
• कोशांबीनगरीमां ललितघटादि बत्रीस प्रसिद्ध महामुनिओ नदीना पूरमां डुबवा
छतां निर्मोहपणे प्रायोपगमन संन्यासने धारण करीने आराधनाने प्राप्त थया.