Atmadharma magazine - Ank 341
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : आत्मधर्म : फागण : २४९८
जेणे पोतानुं हित करवुं होय ने सुखी थवुं होय तेणे पहेलांं तो एम निर्णय
करवो जोईए के हुं आ देहथी जुदो एक आत्मा छुं. पूर्वजन्ममां पण हुं ज हतो; ने आ
देह छूट्या पछी पण हुं ज रहेवानो छुं. अरेरे, जीव पोताने भूलीने जगतना पापमां
रच्यो–पच्यो रहे छे, जगतना पदार्थोनी रुचि ने किंमत करे छे, ने पोतानी किंमत
भूलीने दुःखी थाय छे. पण हुं पोते चैतन्यराजा छुं, मारा अनंतगुणोना वैभवथी
राजतो–शोभतो चैतन्यराजा हुं छुं–एम पोतानी ओळखाण करीने तेनो महिमा अने
अनुभव करतां अतीन्द्रियसुखनो अनुभव थाय छे. भाई, अनंतकाळ सुधी सुख मळे
एवा सुखनो पंथ, संतो तने देखाडे छे, ते पंथने ओळखीने मोक्षनगरीमां जवानो आ
अवसर छे.
अरे, एक गामथी बीजे गाम जवुं होय तोपण लोको रस्तामां भातुं भेगुं लई
जाय छे; तोपछी आ भव छोडीने परलोकमां जवा माटे आत्मानी ओळखाणनुं कांई
भातुं लीधुं? आत्मा कांई आ भव जेटलो नथी; आ भव पूरो करीने पछी पण आत्मा
तो अनंतकाळ अविनाशी रहेवानो छे; तो ते अनंतकाळ तेने सुख मळे ते माटे कांई
उपाय तो कर आवो मनुष्यअवतार ने सत्संगनो आवो अवसर मळवो बहु मोंघो छे.
आत्मानी दरकार वगर आवो अवसर चुकी जईश तो भवभ्रमणना दुःखथी तारो
छूटकारो क्यारे थशे? अरे, तुं तो चैतन्यराजा! तुं पोते आनंदनो नाथ! भाई, तने
आवा दुःख शोभता नथी. अज्ञानथी, जेम राजा पोताने भूलीने ऊकरडामां आळोटे
तेम, तुं तारा चैतन्यस्वरूपने भूलीने रागना उकरडामां आळोटी रह्यो छे, पण ए तारुं
पद नथी; तारुं पद तो चैतन्यथी शोभतुं छे, चैतन्यहीरा जडेलुं तारुं पद छे, तेमां राग
नथी. आवा स्वरूपने जाणतां तने महा आनंद थशे.
अहा, आत्माने राजानी उपमा आपीने ओळखाव्यो. राजा एने कहेवाय के जे
स्वाधीन होय, जेने कोई बीजानी सेवा करवानुं न होय, पराधीनता न होय. ते एवा
पुण्य लईने आव्या होय के कुदरते तेना राजमां साचां मोती वगेरे वैभव पाके ने
अनाजना ढगला थाय; एवा राजानी सेवा करतां ते प्रसन्न थईने सेवा करनारने
ईच्छित धन आपे. राजाना पुण्य विशिष्ट होय छे, तेनां राजलक्षणो वडे ते बीजा करतां
जुदा तरी आवे छे. तेम आ आत्मा तो चैतन्यऋद्धिनो स्वामी परमार्थ राजा छे; ते
स्वाधीन छे, पोते ज स्वयं सुखस्वभावी छे; तेने सुख माटे कोई बीजानी सेवा करवानुं
नथी, सुख माटे कोई बाह्यविषयोनुं के रागनुं सेवन करवुं पडे एवी पराधीनता तेने
नथी. चैतन्यराजा पोते सहजस्वभावे ज ज्ञान ने आनंदस्वरूप छे; तेनी सेवा करतां
सम्यग्दर्शनादि