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दुःखथी भरेला आ संसारमां जो तुं सुखने चाहे
छे तो चैतन्यसुखथी भरेला आत्मानी परम प्रीति करीने
तेमां तारी बुद्धिने जोड; तेमां तने एवुं अजोड सुख
अनुभवाशे के जेमां दुःखनो लवलेश नथी.
अहा, आवो सरस मजानो, सुखथी भरेलो
आत्मा!–आ सुखना समुद्रने छोडीने दुःखना दरिया तरफ
तुं केम दोडे छे? अंतरमां तारा चैतन्यस्वरूपने देख. एक
क्षणना चैतन्यध्यानमां जे कोई अपूर्व परम आनंद थाय
छे तेनो एक अंश पण त्रणलोकना वैभवमां नथी.
एकवार अंदर ऊतरीने जो तो खरो! संसारमां
तें कदी न जोयुं होय, कदी न चाख्युं होय एवुं कोई
अचिंत्य सुख तने तारामां अनुभवाशे.
तंत्री : पुरुषोत्तमदास शिवलाल कामदार संपादक : ब्र. हरिलाल जैन
वर स. २४९८ मह (लवजम: चर रूपय) वष २९ : अक ५