धन्य छे आपणी भारतभूमि...के ज्यां तीर्थंकर
आपणने प्राप्त थाय छे. गुरु कहानना प्रतापे देशोदेश
आत्महितना आ मार्गने चैतन्यना परम गंभीर
Atmadharma magazine - Ank 341
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).
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