Atmadharma magazine - Ank 341
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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तारा पगले – पगले नाथ!
झरे छे आतमरसनी धार

धन्य छे आपणी भारतभूमि...के ज्यां तीर्थंकर
भगवंतो विचर्या; अने आजे पण ए तीर्थंकर
भगवंतोनो पवित्र संदेश आत्मज्ञ–संतो द्वारा
आपणने प्राप्त थाय छे. गुरु कहानना प्रतापे देशोदेश
ने गामेगाम आजे आत्महितनो संदेश पहोंची रह्यो
छे. वहाला बंधुओ! महा भाग्ये मळेला
आत्महितना आ मार्गने चैतन्यना परम गंभीर
महिमापूर्वक सांभळजो...आदरजो...अनुभवजो.