: फागण : २४९८ आत्मधर्म : १ :
वार्षिक वीर सं. २४९८
लवजम फगण
चर रूपय FEB. 1972
• वर्ष : २९ अंक ५ •
आत्म साधना –
हे धर्मबंधु! आ अवसर छे आत्माने साधवानो.
अत्यारे दुनियानी कोई खटपटमां तुं रोकाईश नहीं;
तारा आत्माने साधवानुं लक्ष तुं चूकीश नहीं.
आत्मतत्त्व घणुं–घणुं महान छे. आवा महान
आत्मतत्त्वने लक्षगत करवुं ते ज महापुरुषनी सेवा छे.
तारा चैतन्यनी महानताने तुं लक्षमां लईश, तो
दुनियाना कोई प्रसंगो तने मुंझवशे नहीं. अरे, चैतन्यनी
आवी महानताने चुकीने जगतना नाना–नाना प्रसंगोना
विचार–वमळमां अटवाई जवानुं मुमुक्षुने शोभतुं नथी.
आत्माने साधवाना महान प्रयोजन पासे जगतना
मान के अपमान, निंदा के प्रशंसा, अनुकूळता के प्रतिकूळता
ए कोईनी कांई ज गणतरी नथी आनंदमय आत्माने
साधवा जगत सामे जोवा क्यां रोकावुं? मुमुक्षुने पोतानी
आत्मसाधनामां एवो प्रेम, एवो उल्लास, एवी शांति, ने
एवी मशगुलता छे के एना सिवाय बीजी कोई वातमां
अटकवानुं तेने पोषातुं नथी.