Atmadharma magazine - Ank 341
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: २ : आत्मधर्म : फागण : २४९८
चैतन्यराजानी सेवा करो
तमे पोते चैतन्यराजा छो. चैतन्यराजा रागनी
सेवा करे ए तेने शोभतुं नथी.
(सोनगढमां माह वद त्रीजना रोज जामनगरना श्री छबलबेन फूलचंद तंबोळीना
नवा मकानना वास्तुप्रसंगे पू. गुरुदेवनुं मंगल–प्रवचन)
हे भाई! अनंतगुणनो वैभव जेमां वसेलो छे एवी
चैतन्यवस्तु तुं पोते छो. अरे चैतन्यराजा! तारा अचिंत्य
वैभवने ते कदी जाण्यो नथी, तारा स्वघरमां ते वास कर्यो
नथी; स्वघरने भूली, रागने पोतानुं घर मानीने तेमां तुं
वस्यो छो; पण श्रीगुरु तने स्वघरमां वास्तु करावे छे के हे
जीव! तुं तारा आत्माने चैतन्यस्वरूप जाणीने तेनी सेवा कर.
तेनाथी तारुं कल्याण थशे. अहा, स्वघरमां आववानो उमंग
कोने न आवे?
(समयसार गाथा १७–१८)
वीतरागदेवना मार्गमां एवो उपदेश छे के: हे मोक्षार्थी जीवो! जो तमारे जन्म–
मरणना दुःखथी मुक्त थवुं होय ने आत्मानुं परमसुख अनुभववुं होय तो, जगतमां
महान एवुं तारुं चैतन्यतत्त्व छे–ते ज्ञाननी अनुभूतिस्वरूप छे,–तेने लक्षमां लईने
तेना ज्ञान–श्रद्धा–एकाग्रतावडे तेनी सेवा कर. एटले के तारो महान आत्मा चैतन्यराजा
छे तेनी तुं सेवा कर. तेनी सेवा केम थाय? के रागथी भिन्न एवी जे चैतन्यअनुभूति छे
ते अनुभूतिस्वरूप ज हुं छुं–एम जाणवुं, निःशंक श्रद्धवुं तथा तेमां ठरवुं,–ते आत्मानी
सेवा छे; ने तेना सेवनथी ज मोक्ष थाय छे. बीजी कोई रीते मोक्ष थतो नथी.
भाई, आवा ज्ञानस्वरूप आत्मानी सेवा वगर, तेने जाण्या वगर, तुं संसारमां