वैभवने ते कदी जाण्यो नथी, तारा स्वघरमां ते वास कर्यो
नथी; स्वघरने भूली, रागने पोतानुं घर मानीने तेमां तुं
वस्यो छो; पण श्रीगुरु तने स्वघरमां वास्तु करावे छे के हे
जीव! तुं तारा आत्माने चैतन्यस्वरूप जाणीने तेनी सेवा कर.
तेनाथी तारुं कल्याण थशे. अहा, स्वघरमां आववानो उमंग
कोने न आवे?
महान एवुं तारुं चैतन्यतत्त्व छे–ते ज्ञाननी अनुभूतिस्वरूप छे,–तेने लक्षमां लईने
तेना ज्ञान–श्रद्धा–एकाग्रतावडे तेनी सेवा कर. एटले के तारो महान आत्मा चैतन्यराजा
छे तेनी तुं सेवा कर. तेनी सेवा केम थाय? के रागथी भिन्न एवी जे चैतन्यअनुभूति छे
ते अनुभूतिस्वरूप ज हुं छुं–एम जाणवुं, निःशंक श्रद्धवुं तथा तेमां ठरवुं,–ते आत्मानी
सेवा छे; ने तेना सेवनथी ज मोक्ष थाय छे. बीजी कोई रीते मोक्ष थतो नथी.