Atmadharma magazine - Ank 341
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: फागण : २४९८ आत्मधर्म : ३५ :
एक हतो सिंह.एक हतो वांदरो
(चित्र उपरथी लखायेल ३९ बोधकथाओनुं दोहन)
अगाउना जमानानी वात छे. एक सुंदर जंगल हतुं. जंगलमां अनेक पशुओ
रहेता हता. सिंह ने हाथी रहे, हरण रहे ने वांदरा रहे, सर्प रहे ने ससलां पण रहे.
एक झाड उपर बे वांदरा रहेता हता. एक वांदरो युवान हतो; बीजो वांदरो
बुढ्ढो हतो. ते जंगलमां एक भूख्यो सिंह शिकारने शोधतो हतो. फरतां–फरतां ते आ
झाड पासे आव्यो. झाड उपर बे वांदरा जोया. हवे झाड उपर तो सिंहथी पहोंची शकाय
तेम न हतुं. पण बुद्धिमान सिंहे वांदराने पकडवानी एक युक्ति शोधी काढी.
उनाळानी भरबपोर हती. झाड उपरना वांदरानो पडछायो नीचे पडतो हतो.
सिंहे जोयुं के बूढ्ढो वांदरो छायानी चेष्टाने ज पोतानी मानी रह्यो छे; एटले सिंहे तो
वांदरा सामे नजर करीने एक गर्जना करी अने तेना पडछाया उपर जोरथी पंजो मार्यो.
“हाय! हाय! सिंहे मने पकड्यो” एम समजीने ते मूरख बुढ्ढो वांदरो तो
भयथी चीचीयारी पाडतो नीचे पड्यो...ने सिंहना पंजामां पकडाईने मरण पाम्यो. पण
बीजो जुवान वांदरो तो ऊंचा झाड उपर निर्भयपणे बेसी रह्यो...ने त्यां बेठा–बेठा
सिंहनी चेष्टा तेणे जोया करी.
ते युवान वांदराए विचार कर्यो के बीजो वांदरो नीचे पडीने केम मरी गयो? ने
हुं केम न मर्यो?
विचार करतां तेणे शोधी काढ्युं के हा, बराबर! ते वृद्ध वांदरे नीचेनी छायाने
पोतानी मानी, एटले छाया पर सिंहनो पंजो पडतां ज ते अज्ञानथी भयभीत थईने
नीचे पड्यो ने सिंहनो शिकार बनीने मर्यो. में छायाने पोतानी न मानी, तेथी हुं
मरणथी बची गयो.
हवे ते युवान वांदराने एम थयुं के सिंहे मारा दादाने (वृद्ध वांदराने) मूर्ख
बनाव्यो, तो हुं पण तेने तेनी मूर्खता बतावीने बोध आपुं के सिंह काका! तमे पण
एवी ज मूर्खाई करी रह्या छो.
एकवार तेणे ते सिंहने जईने कह्युं के हे सिंहकाका! तमे तो आ वनना राजा
छो. पण बीजो एक सिंह आव्यो छे, ते कहे छे के वनना राजा तमे नहि पण