Atmadharma magazine - Ank 341
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: ३६ : आत्मधर्म : फागण : २४९८
हुं छुं. त्यारे ते सिंहे क्रोधथी कह्युं–अरे, मारी सत्तानी ना पाडनार वळी बीजो सिंह
केवो? चाल, बताव! ए क्यां रहे छे? एटले एनी खबर लउं!
त्यारे वांदराए कह्युं–काका, सामेना कुवामां ते सिंह रहे छे. बस, सिंह तो दोड्यो
ने कुवामां जोयुं तो पोताना जेवो सिंह देखायो; हती तो ते पोतानी ज छाया, ए कांई
साचो सिंह न हतो, पण मूरखो तेने ज बीजो साचो सिंह समजीने, क्रोधथी अंध थईने,
तेने मारवा कुवामां पड्यो––ने अंते कुवामां डुबी मर्यो.
आ रीते सिंह अने वांदरानी जेम अज्ञानथी जीवो संसारमां जन्म–मरण कर्यां
करे छे.––पण जो साचुं ज्ञान करे, ने छायाथी जुदुं पोतानुं स्वरूप जाणे तो तेने जन्म–
मरण थाय नहि.
हवे एकवार एवुं बन्युं के
पहेलांंनी जेम ज ते वनमां झाड
पर वांदरो बेठो हतो ने भूख्यो
सिंह आव्यो. सिंहने एम थयुं के
नीचे जे छाया हालती–चालती
देखाय छे ते ज वांदरो छे. एटले
तेणे तो ते पडछाया उपर पंजा
मारवा मांड्या! पंजा मारी–
मारीने थाक्यो, पण ते सिंहना
हाथमां तो कांई न आव्युं. जेम
विषयोमां झांवा मारी मारीने
थाके तोपण जीवने जराय सुख
मळतुं नथी तेम सिंहे घणां झांवा
मार्या पण तेना हाथमां कांई न
आव्युं. त्यारे झाड उपर बेठेला
वांदराए कह्युं के अरे, सिंहराज!
जेम अत्यारे तमे मूर्खाई करी
रह्या छो तेम पूर्वे तमारा दादाए
पण एवी मूर्खाई करीने प्राण
खोया हता, जेम तमे