Atmadharma magazine - Ank 341
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: फागण : २४९८ आत्मधर्म : ३७ :
मारी छायाने ज वांदरो समजीने तेना उपर पंजो मारी रह्या छो तेम पूर्वे तमारा एक
सिंहदादाए कूवामां पोतानी छाया देखीने तेने ज साचो सिंह मानी लीधो ने तेनी साथे
लडवा कुवामां झंपलावीने डुबी मर्या.
सिंह कहे : अरे वांदराजी! जेम मारा दादाए भूल करी हती तेम तारा दादाए
पण भूल करी हती. एकवार तारा एक वांदरादादा झाड उपर बेठा हता ने नीचे तेनी
छाया पर सिंहे पंजो मार्यो, त्यां तो उपरनो वांदरो ध्रूजी ऊठ्यो, ने ‘सिंह मने मारी
नांखशे’ एवा भयथी नीचे पड्यो. एम तुं पण हमणां नीचे पडवानो छो.
वांदराए हसीने कह्युं––अरे सिंहमामा! ए जमाना गया. हवे तो भेदज्ञानना
जमाना आव्या छे. पडछायाने पोतानो मानवाना जमाना वीती गया. तमने खबर
नहि होय के हुं सोनगढना आंबावनमां रही आव्यो छुं. ए सोनगढमां एक महात्माना
प्रतापे भेदज्ञानना वायरा वाई रह्या छे; त्यांना मनुष्यो तो जड–चेतननुं भेदज्ञान
करनारा छे, ने ते देखीने मारा जेवा वांदराने पण देहने आत्मानी भिन्नतानी भावना
जागी छे. हवे, छायाने पोतानुं रूप मानीने प्राण गुमाववाना मूर्खाईना जमाना गया.
तमे तमारे छाया उपर गमे तेटला पंजा मारोने, हुं तो छायाथी जुदो निर्भयपणे मारा
स्थाने बेठो छुं.
वांदरानी वात सांभळीने सिंहमामा समजी गया के अहीं मारुं कांई चालवानुं
नथी. ऊलटुं वांदरानी बुद्धि प्रत्ये तेने बहुमान जाग्युं के वाह! देह अने छायानी
भिन्नताना भानथी आ वांदराने केवी निर्भयता छे! तो पछी, देह अने आत्मानी
भिन्नता जाणवाथी तो केवी निर्भयता थाय! आम सिंहने विचारवानुं परिवर्तन थयुं.
सिंहे पोताना विचार वांदराने जणाव्या. वांदराए कह्युं––मामा! तमारी वात
तद्न साची छे. देह अने आत्मानी भिन्नता जाणतां, आ सिंहनी तो शी वात! –परंतु
काळरूपी सिंहनो पण भय रहेतो नथी; काळरूपी सिंह आवे के मृत्यु आवे, तोपण तेने
पाछो वाळी द्ये के अरे काळ! तुं चाल्यो जा...मारी पासे तारुं जोर नहि चाले; तारो पंजो
मारा उपर नहि चाले, केमके हुं कांई देह नथी, हुं तो अविनाशी आतमराम छुं;
मृत्युरूपी सिंह मने मारी शके नहीं.
हे सिंहमामा! आवा सरस भेदज्ञाननी वात सांभळीने हवे तमे हिंसाना
क्रूरभाव छोडो ने आत्माना परम शांतभावने धारण करो. तमारा वंशमां पूर्वे एक