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सर्वज्ञभगवानना कहेण आव्या छे
चैतन्यतत्त्वना गंभीर महिमानुं अद्भुत
स्वरूप समजावतां गुरुदेव अत्यंत प्रमोदथी कहे छे
के वाह! आ तो मोक्षदशाने वरवा माटे
सर्वज्ञभगवाननां कहेण आव्या छे. चैतन्यना
अनंतगुणनी शुद्धतारूपी अनंता करियावर
(आत्मवैभव) सहित मोक्षलक्ष्मीने वरवा माटे
भगवाननुं आ कहेण आव्युं छे के हे जीव! तुं आवा
चिदानंद स्वरूपने लक्षमां लईने तेनी लगनी लगाड.
चैतन्यस्वरूपनो निर्णय करीने तेनी साथे लगन
करतां, तेमां उपयोगने जोडीने स्वानुभव करतां
अपूर्व आनंदसहित तने मोक्षनी प्राप्ति थशे.
“अहा! गुरुदेव! आप भगवान पासेथी
मोक्षनी प्राप्तिनुं कहेण लाव्या छो... ते उत्तम कहेणने
अमे अंतरना आनंदथी स्वीकार्युं छे. भगवानना
कहेणने कोण न स्वीकारे?
तंत्री : पुरुषोतमदास शिवलाल कामदार संपादक : ब्र. हरिलाल जैन