: ३८: आत्मधर्म : चैत्र: २४९८
• ज्ञानीए तो अंतर्मुख थईने स्वभावनुं सुख चाख्युं छे, त्यां संसारना कोई सुखनी
वांछा तेने नथी. अरे, मारा चैतन्यसुख पासे संसारनुं सुख केवुं? संसारना
रागजनित कोईपण सुखमां धर्मीने सुख लागतुं ज नथी. चैतन्यसुखना अमृत
पासे ए विषयसुखो तो झेरी स्वादवाळो लागे छे.
• मारो आत्मा सदा चिदानंदस्वरूप छे–एम में जाण्युं छे तेथी हवे अन्य कांई मारे
साध्य नथी. माराथी अन्य कोई पण परद्रव्य–देखेलुं के सांभळेलुं हो, परिचयमां
आव्युं हो, बूरु हो के भलुं हो, संस्कृत हो के विकृत हो, नष्ट हो के उत्पन्न हो, स्थूळ
हो के सूक्ष्म हो, जड हो के चेतन हो, ईन्द्रियोने प्रिय हो के अप्रिय हो, –ते अन्य
द्रव्योथी मारे कांई पण साध्य ज नथी; सदा चिदानंदस्वरूप मारो आत्मा ज मारे
साध्य छे.
अर्धा श्लोकमां मुक्तिनो उपदेश
‘हुं चिद्रूप केवळ शुद्ध आनंदरूप छुं’ – एम स्मरण करुं
छुं – चिंतन करुं छुं, – मुक्ति माटे सर्वज्ञ भगवानो जे उपदेश छे
ते आ अर्धा श्लोकमां समाई जाय छे.
शुद्ध चिद्रूपनुं चिंतन करवुं तेमां सर्वज्ञदेवनो बधो उपदेश
समाई जाय छे, तेथी कुन्दकुन्दस्वामीए शुद्ध आत्मानी
अनुभूतिने समस्त जिनशासन कह्युं छे.
वैराग्य–समाचार
• मुंबईना भाईश्री चंद्रकान्त हरिलाल दोशी ता. ७–३–७२ ना रोज मुंबई मुकामे
हृदय बंध पडी जतां एकाएक स्वर्गवास पामी गया. मुंबई मुमुक्षुमंडळना तेओ
एक उत्साही ने उदार कार्यकर हता; परमागममंदिर वेलासर थाय ते माटे तेमने
घणी भावना हती. सोनगढमां स्वतंत्र मकान करीने केटलोक वखत तेमणे लाभ
लीधो, ने विशेष निवृत्तिथी रहेवानी भावना हती. स्वर्गवासना बे दिवस अगाउ
तेमने मुंबईमां गुरुदेवना दर्शननो तथा प्रवचननो लाभ मळतां तेओ घणा खुशी
थया हता, ने गुरुदेवसमक्ष पोतानो प्रमोद तथा भक्तिभाव व्यक्त कर्यो हतो. बे
दिवस बाद तो तेओ स्वर्गवास पामी गया.