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* चैतन्यनी आराधना *
मुमुक्षु जीवे पोताना जीवनमां जे कांई करवानुं छे
ते ५ोतानी चैतन्य–आराधना पुष्ट थाय–ते ज
करवानुं छे. देव–गुरुनी सेवा के शास्त्रस्वाध्याय,
सत्संग के वैराग्य, धर्मश्रवण के साधर्मीसंग–ते
बधायमां पोताना आत्मानी चैतन्यआराधना
प्राप्त थाय ने पुष्ट थाय–ए ज मुमुक्षुनुं ध्येय, ए
ज लक्ष ने एज एक प्रयोजन छे. गुरुदेव
फरीफरीने रोजेरोज प्रवचनमां ए ज वात घूंटावे
छे. ए एक ज भावने अंतरमां घूंटीघूंटीने
मुमुक्षुओ चैतन्यनी आराधना सुधी पहोंचे छे....ने
पंचपरमेष्ठीनी प्रसन्नता प्राप्त करे छे.
जय हो आत्मआराधना–दातार गुरुदेवनो!
तंत्री : पुरुषोत्तमदास शिवलाल कामदार * संपादक : ब्र. हरिलाल जैन
वीर सं. २४९८ प्र. वैशाख (लवाजम : चार रूपिया) वर्ष २९ : अधिक अंक