: ३४ : “आत्मधर्म” : प्र. वैशाख २४९८ :
अत्यारे आ पंचमकाळ छे अने तेमां....ज्यां जुओ त्यां विषय–कषायनी प्रवृत्ति जोरशोर
करी रही छे, चारेकोर राग–द्वेषनी रमझट चाली रही छे; आ झेरी प्रवृत्तिमांथी उगरवा माटे
अहींनो समाज पू. गुरुदेवना चरणोनुं अभिषेक करवा तलसी रह्यो छे, तलपापड छे; अज्ञानना
एक एवा माळखे अहींनो समाज अने समुदाय पहोंच्यो छे के ज्यां पू. गुरुदेव जेवा महान
पवित्र अने भव्य आत्मानुं आगमन अमारा हैयानी होळीने शमावी दईने अमृतनुं मधुसींचन
करशे; एटले आवा आ कपरा काळमां पू. गुरुदेवनी आध्यात्मिक, चमत्कारिक, वीतरागी
अमृतमय वाणीनी जरूरीयात हवे विशेष जणाई रही छे.
अनुभवथी भारतभरमां अध्यात्मनो धोध वहेवडाव्यो छे अने जैनधर्मना शासनने शोभाव्युं छे.
जेवी रीते धर्मतीर्थनायक भगवान श्री महावीरस्वामीना समवसरणना विहारथी तेमनी
दिव्यध्वनि द्वारा सारीये दुनियाने मोक्षमार्गनो सत्य उपदेश मळ्यो हतो तेवी ज रीते पू.
गुरुदेवना भारतभरना विहारथी अने तेमना दिव्य उपदेशथी आखुं भारत तो डोली ऊठयुं छे
अने शासनप्रभावना अद्भुत रीते वृद्धि पामी छे.
परंतु हवे पू. गुरुदेवश्रीनो आफ्रिका तरफ विहार थाय–एवो समय पाकी गयो छे अने
अहींना धर्म–तृषातुर थयेला जैनसमाजने पू. गुरुदेवनी आध्यात्मिक बंसरी सांभळवा मळे तो
ज तृप्ति थाय एवा संजोगो छे.
पू. गुरुदेवनो ज्ञानप्रकाश भारतदेशमां बधे प्रकाशित थई रह्यो छे, अने तेओश्री लाखो
जीवोने साचा मार्गे दोरी रह्या छे, पू. गुरुदेवनुं आगमन अहींना समाजना अंतरना अंधारा
ओलवशे अने आत्मदीपनो प्रकाश बहार लावशे.
अंतमां अमे सौ अंतःकरणपूर्वक भक्तिभावथी पू. गुरुदेवने अहीं आफ्रिका पधारवानुं
भावभीनुं आमंत्रण पाठवीए छीए, अने अमारुं आ प्रेमभर्युं आमंत्रण स्वीकारवा नम्रभावे
विनविए छीए.
एज विनयवंत––
श्री दिगंबर जैन मुमुक्षुमंडळ, नाईरोबी वती
(प्रमुख) जेठालाल देवराज शाह.
(मंत्री) झवेरचंद पुनमचंद शाह.