Atmadharma magazine - Ank 342a
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: ३६ : “आत्मधर्म” : प्र. वैशाख २४९८ :
पालेजनी प्रसादीमां गुरुदेव कहे छे–
हे जीव! तुं चैतन्यराजा छो
पालेजपुरीमां पू. गुरुदेव बे दिवस रह्या. बंने दिवस हर्ष–
उल्लासभर्युं वातावरण रह्युं. एक तो पालेज गुरुदेवनुं जुनुं परिचित
गाम, अने वळी वैशाख सुद बीजनो मेळ! भले आ बीज अधिक
वैशाखनी हती तोपण पालेजमां जाणे नाना पाया पर जन्मजयंति ज
उजवाती होय एवुं वातावरण हतुं. गुरुदेव साथे ‘अनंतनाथ’
भगवानने भेटतां ने पूजतां आनंद थतो हतो. श्रीफळ–आंबा वगेरेना
तोरणोथी सुशोभित मंडपमां आनंदथी जन्मजयंतिने लगता कार्यक्रमो,
प्रभातफेरी मंगलवधाई–भक्ति वगेरे थया हता. उपस्थित मुमुक्षुओए
होंशेहोंशे आनंद–उल्लासथी भाग लीधो हतो. गुरुदेव पण खूब
प्रसन्नचित्त हता, ने प्रसन्नचित्ते चैतन्यराजानी सेवा करवानुं
समजावता हता के–तुं पोते ज चैतन्यराजा छो, तेने जाणीने तेनो
अनुभव कर, ––ए ज मोक्षनी रीत छे, अहीं गुरुदेवना पालेजना
प्रवचनोनी प्रसादी वांचीने आपने पण आनंद थशे.
[पालेज शहेरना प्रवचनोमांथी: अधिक वैशाख सुद १–२ समयसार गाथा १७–१८]
आ देहथी भिन्न आत्मा आनंदस्वरूप छे, तेने भूलीने, पर मारां ने रागमां मारुं सुख
एवी जे अज्ञानबुद्धि छे ते आत्माने दुःखनुं कारण छे तेथी ते अरि छे––दुश्मन छे. आत्माना
ज्ञानवडे तेने हणीने, तेमज राग–द्वेषने पण हणीने जेओ सर्वज्ञ–वीतराग परमात्मा थया तेओ
अरिहंत छे. ने परमार्थे बधाय आत्मानो तेवो स्वभाव छे.