बंनेथी पार ज्ञानस्वरूप पोते कोण छे ते कदी जाण्युं नथी. भाई! तारी चैतन्यचीज पाप अने
पुण्य बंनेथी जुदी जातनी छे. रागथी पार चैतन्यना वेदनवडे तारुं अज्ञान टळशे ने सम्यक्त्व
थशे, त्यारे ज तारा भवना आरा आवशे. आवा ज्ञानना भान वगर गमे तेटला भणतर भणे,
के दुनियामां गमे तेटला डहापण करे, तेमां आत्मानुं कल्याण के धर्म नथी.
स्वर्गमां गयो ते तो पुण्य करीने गयो; एटले पुण्य जीवे अनंतवार कर्यां छे. राग तो करतां
अज्ञानीने आवडे छे, ए कांई नवुं नथी. पण रागथी पार, एकत्व चैतन्यस्वरूप आत्मा पोते शुं
चीज छे ते कदी जीवे जाण्युं नथी–अनुभव्युं नथी. तेथी अहीं वीतरागी संतो आत्माने जाणवानो
उपदेश आपे छे.
किंमत अने महिमा छूटी जाय छे, पोते पोताने चैतन्यनी अनुभूतिस्वरूप जाणे छे. –आम
पोतानुं स्वरूप जाणीने तेनी श्रद्धा करवी, अने पछी तेमां लीन थईने तेनुं अनुसरण–सेवन करवुं
ते मोक्षने साधवानो उपाय छे, तेना वडे अवश्य मोक्षनी सिद्धि थाय छे.
खास चैतन्य लक्षण वडे बीजाथी जुदो लक्षमां आवे छे; तेना चैतन्यनी विशेष अनुभूतिना
स्वादवडे तेनुं अद्भुतस्वरूप ओळखाय छे. अहा, आत्मानी ओळखाण थतां समकिती चैतन्यना
अतीन्द्रिय आनंदने अनुभवे छे; ते स्वाद जगतना बीजा कोई पदार्थमां के रागमां क्यांय नथी.
नरकमां रहेलो जीव पण ज्यां अंदर पोतानी चैतन्यवस्तुनी सन्मुख थईने तेने अवलंबे छे त्यां
तेने आत्मामां परम आनंदना अंकुरा फूटे छे. ते आनंदना स्वाद पासे रागनो रस एने छूटी
जाय छे.