Atmadharma magazine - Ank 342a
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: प्र. वैशाख : २४९८ “आत्मधर्म” : ३७ :
पोताना सर्वज्ञ–आनंदस्वभावने भूलीने अनादिकाळमां पाप तेमज पुण्य बंने भावो
जीवे कर्यां छे ने तेना फळमां नरकमां तेमज स्वर्गमां अनंत अवतार कर्यां छे. पण ते पुण्य–पाप
बंनेथी पार ज्ञानस्वरूप पोते कोण छे ते कदी जाण्युं नथी. भाई! तारी चैतन्यचीज पाप अने
पुण्य बंनेथी जुदी जातनी छे. रागथी पार चैतन्यना वेदनवडे तारुं अज्ञान टळशे ने सम्यक्त्व
थशे, त्यारे ज तारा भवना आरा आवशे. आवा ज्ञानना भान वगर गमे तेटला भणतर भणे,
के दुनियामां गमे तेटला डहापण करे, तेमां आत्मानुं कल्याण के धर्म नथी.
संसारमां जीवे नरकना भव करतां स्वर्गना भव असंख्यगुणा कर्यां छे. स्वर्गना
असंख्यभव करे त्यारे नरकनो एक भव थाय–ए रीते अनंतवार स्वर्ग नरकना भव कर्यां. हवे
स्वर्गमां गयो ते तो पुण्य करीने गयो; एटले पुण्य जीवे अनंतवार कर्यां छे. राग तो करतां
अज्ञानीने आवडे छे, ए कांई नवुं नथी. पण रागथी पार, एकत्व चैतन्यस्वरूप आत्मा पोते शुं
चीज छे ते कदी जीवे जाण्युं नथी–अनुभव्युं नथी. तेथी अहीं वीतरागी संतो आत्माने जाणवानो
उपदेश आपे छे.
जे मुमुक्षु छे, जे आत्मानो अर्थी छे, तेनुं प्रयोजन ए छे के पोताना चिदानंदस्वरूप
चैतन्यराजने जाणवो. अंतरना ज्ञानवडे चैतन्यतत्त्वनी किंमत करतां, बीजा बधा पदार्थोनी
किंमत अने महिमा छूटी जाय छे, पोते पोताने चैतन्यनी अनुभूतिस्वरूप जाणे छे. –आम
पोतानुं स्वरूप जाणीने तेनी श्रद्धा करवी, अने पछी तेमां लीन थईने तेनुं अनुसरण–सेवन करवुं
ते मोक्षने साधवानो उपाय छे, तेना वडे अवश्य मोक्षनी सिद्धि थाय छे.
जेम लोकमां राजा तेना खास लक्षणोवडे बीजाथी जुदो तरी आवे छे, तेना विशेष
पुण्यलक्षणोवडे ते ओळखाय छे. तेम जगतमां श्रेष्ठ एवो आ आत्मा चैतन्यराजा छे ते तेना
खास चैतन्य लक्षण वडे बीजाथी जुदो लक्षमां आवे छे; तेना चैतन्यनी विशेष अनुभूतिना
स्वादवडे तेनुं अद्भुतस्वरूप ओळखाय छे. अहा, आत्मानी ओळखाण थतां समकिती चैतन्यना
अतीन्द्रिय आनंदने अनुभवे छे; ते स्वाद जगतना बीजा कोई पदार्थमां के रागमां क्यांय नथी.
नरकमां रहेलो जीव पण ज्यां अंदर पोतानी चैतन्यवस्तुनी सन्मुख थईने तेने अवलंबे छे त्यां
तेने आत्मामां परम आनंदना अंकुरा फूटे छे. ते आनंदना स्वाद पासे रागनो रस एने छूटी
जाय छे.
आ शरीरादि जड, अने रागादि शुभ–अशुभभावो–ए कोई राजा नथी, तेमां चैतन्यनी
शोभा नथी; शरीर अने रागथी पार जे अतीन्द्रिय चैतन्यभाव, ते आत्मानुं