हाथ–बे पग–बे आंख वगेरेथी कांई मनुष्यपणुं खरेखर कहेवाय नहि, केमके बे हाथ, बे
पग वगेरे तो वांदराने पण छे–ते उपरांत एने तो एक लांबुं पूंछडुं पण छे.
मनुष्यपणानी विशेषता तो विवेकमां छे. विवेक एटले स्व–परनुं भेदज्ञान; आत्मा शुं
ने भिन्न चीज शुं? तेने ओळखीने विवेक करवो जोईए. १६ वर्षे श्रीमद् राजचंद्र कहे छे
के आत्मा कोण छे अने तेनुं खरुं स्वरूप शुं छे तेनो हे जीव! तुं विचार कर. हंस एने
कहेवाय के जेनी चांचमां दूध अने पाणीने जुदा करवानी शक्ति छे; जेनी चांचमां दूध
अने पाणीने जुदा करवानी शक्ति न होय तेने हंस कही शकाय नहीं. एवी रीते जेना
ज्ञानमां राग अने ज्ञानने जुदा पाडवानी ताकात छे ते ज खरो चैतन्यहंस छे; ते ज
विवेकी छे.
पड्या होय तेमां तो मुक्ताफळना मोती अने मांसना लोचा बंने छे, पण कागडो तो
मोतीने छोडीने मांसने ग्रहण करे छे, ने हंसलो तो साचा मोतीना चारा चरनारो छे.
तेम आत्मामां साचा मोती जेवो शुद्धचैतन्यस्वभाव, अने रागादि विकारभावो होवा
छतां, ज्ञानी तो तेमां विवेक रागरहित चैतन्यस्वभावने ग्रहण करीने तेनो स्वाद ल्ये
छे; अने अज्ञानी तो रागादि साथे भेळसेळवाळो आत्मा अनुभवे छे.